Tuesday, March 15, 2011

अच्छी कैरियर की सार्थकता

समस्त आत्मीय जन गौरव का सादर  अभिवादन स्वीकार करें !!
                          आज मेरी मुलाकात बारहवीं की परीछा देकर विद्यालय  से बाहर आते कुछ छात्रों से हुयी | सभी अपने उत्तर और परीछा के विषय में आपस में चर्चा कर रहे थे, किसी का कहना था इस बार सरल प्रश्न आये थे तो कोई अपने पढ़े हुए प्रश्नों के न आने से उदास था कुल मिलकर माहौल खुशनुमा था | तभी एक समूह में खड़े छात्रों ने अपने भविष्य की योजनाओं पर वार्तालाप प्रारंभ किया | किसी ने कहा मुझे आयकर सलाहकार बनना है तो कोई इंजीनियरिंग करना चाहता था, किसी का कहना था की मुझे तो डॉक्टर ही बनना है | इसी बीच एक छात्र ने गौरवपूर्ण उत्साह के साथ कहा की मुझे तो सेना में जाना है, मै भारतीय सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहता हूँ !! बस उस छात्र के इतना कहते ही बाकि सभी छात्र उसपर टूट पड़े और कहने लगे ये तू क्या कह रहा है यार, ये सेना वेना में जाने से क्या फायदा, उसे बिच में ही रोककर दूसरा बोल उठा तू कोई अच्छा काम करने की सोच यार वैसे भी आजकल फौजियों की पहले जैसी इज्जत भी नहीं रही कहीं कोई सैनिक शहीद हो जाता है तो न्यूज़ चैनल वाले उसका नाम तक नहीं देते सिर्फ एक बार हेड लाइन आता है "कश्मीर में ४ जवान शहीद" कहाँ घर परिवार, ऐशोआराम छोड़कर दूर अकेला जीवन बिताएगा ऊपर से इस काम में खतरा भी बहुत है कहीं कुछ अनहोनी हो गयी तो जीवन भर का दर्द अलग..........!! तू अपने पैर में कुल्हाड़ी मत मार कोई अच्छी सी प्रोफैशनल कोर्स करके अच्छा सा जॉब कर और अपना कैरियर बना, इन सबमे कुछ नहीं रखा है | तभी माहौल में कुछ ख़ामोशी और भारीपन सा छा गया और सभी मिलते रहने के वादे के साथ अपने अपने घरों की ओर चल पड़े | 
                           मैंने जब से उन युवा साथियों की बातें सुनी उनके विचार जाना तभी से मन में यही सवाल बार बार आ रहा है की क्या देश की सेवा करने से भी अच्छी कोई जॉब हो सकती है ? क्या अब हमारे लिए अच्छा कैरियर और अच्छी इनकम सबकुछ और देश गौण हो गया है ? क्या वाकई में आजकल फौजियों की कोई इज्जत नहीं रह गयी है ? क्या भगत सिंह और आज़ाद के देश के जवान अब अपने देश के लिए शहादत देने से डरने लगे हैं ? मन में और भी कई सवाल आने लगे हैं कि क्यों ? आखिर ऐसा क्यों ?
                           जब मै जवाब तलाशने की कोशिश करता हूँ तो यहाँ पर भी अपना ही दोष नजर आने लगता है | उन युवाओं की बातें कमोबेश सच ही तो थीं, आखिर कितना सम्मान देते हैं हम अपने सैनिकों को, अपने शहीदों को और उनके परिजनों को ? क्या अंजाम होता है शहादत ? अरे हम तो उन शहीदों की ताबूतों में भी धोटाले करने से भी बाज नहीं आते जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण हँसते हँसते कुबान कर दिए और अब तो हमारे राजनीतिज्ञ शहीदों की शहादत पर भी राजनीती की रोटी सेंकने लगे हैं | इतना ही नहीं हम शहीदों के परिजनों को रोता बिलखता छोड़ देते हैं और यह जानने की कोशिश भी नहीं करते की उनके पास दो वक्त की रोटी भी है या नहीं |
                             मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल गए, नहीं भी मिले हैं तो मिल जायेंगे |  पर अगर यही हाल रहा तो अच्छी इनकम और अच्छे कैरियर की लालच में हमारे युवा विदेशों में बसने लग जायेंगे और हम बस उनकी राह तांकते रह जायेंगे | मै अपने युवा साथियों से भी यह कहना चाहता हूँ कि क्या हमारे लिए पैसा ही सबकुछ है ? क्या अच्छी नौकरी, अच्छा व्यापार करना और सफल होना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य है ? क्या हमारे लिए अपनी मर्तुभूमि अपने वतन अपने भारत की कोई कीमत नहीं ? आखिर क्यों हम कतराते हैं देश के लिए अपना योगदान देने में ? मेरे कहने का अर्थ यह बिलकुल नहीं है की हमसब सेना में भर्ती हो जाएँ | पर हम देश के विकास की मुख्यधारा से जुड़कर अपने सामर्थ्य के अनुरूप योगदान तो दे ही सकते हैं और हमें यह भी विचार करना चाहिए की अगर आज हम पलायनवादी रुख अपनाते हैं तो जरा सोचिये क्या हमारी आने वाली पीढ़ी क्या हमें माफ़ कर पायेगी और उस आखिर उस कैरियर की सार्थकता क्या होगी जिसे हमने देश, समाज, परिवार की कीमत चुकाकर प्राप्त किया होगा ?
                                                             जय हिंद जय भारत 
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Saturday, March 5, 2011

हम सुधरेंगे जग सुधरेगा

समस्त आत्मीय जनों को देरी की माफ़ी के साथ सादर प्रणाम,
                   आजकल ऑरकुट, फेसबुक पर हमारे कुछ देशभक्त युवा मित्रगण "क्रांति" और "संघर्ष" का नारा बुलंद कर रहे हैं | यह प्रयास देश की वर्तमान हालात से व्यथित और दुखित होकर किया जा रहा है, युवा साथियों का देश के प्रति गंभीर चिंतन काबिलेतारीफ और स्वागतयोग्य है उनकी देशभक्ति पूर्ण भावनाओं पर भी हमें गर्व है पर अब सवाल यह है की क्या वर्तमान में भारत में किसी "संघर्ष" अथवा "क्रांति" की आवश्यकता है क्या ? बेशक भारत में "संघर्ष" अथवा "क्रांति" की आवश्कता है पर मिश्र की तर्ज पर हम भी सड़कों में उतर जाएँ और संवैधानिक तंत्रों पर सवाल उठायें यह कतई उचित प्रतीत नहीं होता | हम भारतीय हैं, हमारा लोकतंत्र पर विश्वास और आस्था अभी कायम है अतः अगर हम क्रांति या संघर्ष की बात करते भी हैं तो उसका का स्वरुप लोकतान्त्रिक और वैचारिक होना चाहिए | अर्थात हमें क्रांति की आवश्कता है वह भी वैचारिक क्रांति | समय के अनुसार लोगों को जागृत करने की आवश्कता है, आवश्कता है, एक स्वस्थ भारत के निर्माण की जो भय भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त हो, जहाँ सभी को कागज पर नहीं वास्तव में सामान अधिकार प्राप्त हो | पर क्या यह हम सड़कों पर उतर कर या नारे लगाकर कर सकते हैं...मेरे विचार से तो बिलकुल भी नहीं | हम अगर भारत के नवनिर्माण का स्वप्न देखते हैं तो भारत के अंदाज़ में देखना होगा मिस्र या अन्य देशों से भारत की तुलना करने की हमें कोई आवश्कता नहीं |
                           हम निश्चित रूप से वर्तमान में देश के हालात से दुखी हैं और हमारा यह दुःख आक्रोश में भी परिवर्तित होने लगा है पर यही वह समय है जब हमें जोश से नहीं होश से काम लेना है और हर वर्ग को भारत के जागरूक कर देश के विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है | हम सभी को यह भी विचार करना चाहिए की हम भारतीय क्या अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हो रहे है ? क्या हम अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग रहे हैं ? आइये जरा हम विचार करें - क्या हम अपने नगर अपने प्रदेश अपने देश को साफ़ रखने के लिए कोई योगदान दे पाते हैं........? नहीं बल्कि हम गंदगी फैलाते हैं और दोष देते हैं प्रशासन को | क्या हम नियम कायदों से बचने या गलत काम करवाने के लिए के लिए रिश्वत नहीं देते........देते हैं, और कहते हैं की देश में भ्रष्टाचार दिन रात बढ़ रहा है | क्या हम राष्ट्रीय संपत्ति का ध्यान रखते हैं......नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संपत्ति को खुद छति पहुंचाते हैं और दोष देते हैं सरकार को | ये तो केवल आत्मचिंतन एवं आत्म दर्शन के लिए कुछ उदाहरण मात्र हैं पर हमारे द्वारा दिनरात इस प्रकार की न जाने कितनी ही हरकतें जाने अनजाने में ही की जाती है और दोष हम देते हैं दूसरों को, अब जरा सोचिये क्या यह उचित है ? क्या देश की दुर्दशा के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या दोष देने के अलावा हम कोई सार्थक कार्य कर पाए हैं ?
                           मै इस पोस्ट के माध्यम से केवल अपने काबिल युवा साथियों से यही कहना चाहता हूँ की आइये, अब हम एक प्रयास करें आम जनता को जागरूक करने का और इसकी शुरुआत करें अपने से, संकल्प लें हम कोई कार्य करने से पहले यह अवश्य विचार करें की क्या यह कार्य नैतिक, न्यायिक और उचित है ? हमारे कार्यों से किसी को कोई कष्ट तो नहीं हो रहा है ? हम कहीं जाने अनजाने में अपनी राष्ट्रीय संपत्ति को छति तो नहीं पहुंचा रहे हैं ? स्वार्थवश भ्रष्टाचार को बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं ? भूलवश ही सही पर हमारा कोई कार्य राष्ट्र विरोधी तो नहीं है ? क्या हम अपने पद का दुरूपयोग कर किसीभी व्यक्ति से कोई अनितिक काम तो नहीं करवा रहे हैं भले ही वह काम छोटा या बड़ा ही क्यों न हो ?
                             "जब हम सुधरेंगे, तब जग सुधरेगा" आज इस वाक्य को हमें सार्थक करना होगा | उपरोक्त बातों पर जब हम ध्यान देने लग जायेंगे और जब हमारे भीतर सुधार आएगा तो अन्य लोग भी स्वतः अपने भीतर सुधार करने का प्रयास करेंगे, संभव है की इस प्रक्रिया में अधिक समय लगे पर जब हम जागरूक हो गए, हमारी जनता जागृत हो गयी, अनुशाषित हो गयी तो भारत देश को विश्वगुरु का पद पुनः प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता अतः हमें क्रांति सुधार के रूप में लानी होगी संघर्ष स्वयं की खामियों से करना होगा और तभी हमारी क्रांति हमारा संघर्ष सार्थक और सफल होगा, हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर सकेंगे तभी हमारा संकल्प पूर्ण होगा तो आइये मित्रों शुरुआत हम आज से और स्वयं से करें...
                                                          बहुत हुए आपस के विवाद
                                                          मिला हमें दुःख? अवसाद?
                                                          आओ मिलकर लें संकल्प
                                                           रहेगा भारत सदा आबाद.
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                                                              जय हिंद जय भारत
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