Friday, June 14, 2013

चौरासी साल के युवा थे विद्या भैया...




 - गौरव शर्मा "भारतीय"

सुकमा के दरभा घाटी में बर्बर नक्सली हमले में घायल विद्याचरण शुक्ल अंततः छत्तीसगढ़ को रोता बिलखता छोड़कर चले गए। उनके निधन के साथ ही उस स्वर्णिम युग का भी अवसान हो गया जिसमे उन्होंने 50 वर्षों से भी अधिक समय तक देश की राजनीति की दशा व दिशा तय करने में अहम भूमिका निभाई। चौरासी वर्ष के इस बुजुर्ग राजनेता को कभी वयोवृद्ध नहीं कहा गया। वे सदैव विद्या भैया का संबोधन ही पाते रहे। उनके साथ बुजुर्गों की भीड़ नहीं बल्कि युवाओं की फ़ौज हुआ करती थी। विद्या भैया युवाओं के प्रेरणाश्रोत रहे हैं। युवा कार्यकर्ताओं को उनके आशीर्वाद व मार्गदर्शन में अपना उज्ज्वल भविष्य नजर आया करता था। उनके हजारों समर्थकों को विश्वास था कि वे एक बार फिर छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को पुनर्जीवित कर देंगे। विद्या भैया एक ऐसे राजनेता थे जिन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में अपने साथ साथ छत्तीसगढ़ को भी स्थापित किया। नौ बार उन्होंने भारतीय संसद में छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया। दिल्ली में रायपुर की पहचान थे विद्या भैया। इंदिरा गाँधी, पीवीनरसिम्हा राव, वीपी सिंह व चंद्रशेखर के मंत्रिमंडल में वीसी शुक्ल कई महत्वपूर्ण विभागों के मंत्री रहे। एक समय उनकी गिनती देश के सर्वाधिक ताकतवर राजनेताओं में होने लगी थी। उन्हें भावी प्रधानमंत्री के रूप में भी देखा जाने लगा था। आपातकाल के समय विद्याचरण शुक्ल केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री थे। मीडिया को नियंत्रित करने व इंदिरा गाँधी के निर्देशों का अक्षरशः पालन करवाने के लिए उनके कार्यकाल को आज भी याद किया जाता है। 2 अगस्त 1929 को रायपुर में जन्में विद्याचरण शुक्ल ने नागपुर के मौरिस कालेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। राजनीति में आने से पहले उन्होंने एक शिकार कंपनी भी बनाई पर जब उनका मन इस काम में नहीं लगा तो उन्होंने अपने पिता पंडित रविशंकर शुक्ल की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए राजनीति में सक्रिय हुए और 1957 में महासमुंद लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर सबसे कम उम्र के सांसद बनने का गौरव हासिल किया। उनकी रूचि हमेशा राष्ट्रीय राजनीति में रही पर छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद वे प्रथम मुख्यमंत्री पद के स्वाभाविक दावेदार माने गए। उनके पिता मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री थे अतः उनकी भी इच्छा थी कि प्रथम मुख्यमत्री बनकर वे छत्तीसगढ़ को गढ़ सकें। एक ऐसे छत्तीसगढ़ का निर्माण कर सकें जो शांत समृद्ध व खुशहाल हो। जहाँ हर वर्ग को सामान अवसर प्राप्त हो पर उनका यह स्वप्न अधुरा ही रह गया। वे छत्तीसगढ़ के प्रथम मुख्यमंत्री नहीं बन सके। 2013 का विधानसभा चुनाव उनके लिए फिर एक अवसर लेकर आया था। विद्या भैया पूरी शिद्दत से कांग्रेस को छत्तीसगढ़ में पुनर्जीवित व स्थापित करने में जुटे थे। परिवर्तन यात्रा के प्रारंभ से सुकमा के अंतिम सभा तक वे साथ रहे। चौरासी वर्ष की उम्र में भी उनकी चुस्ती और फुर्ती देखकर युवा कार्यकर्त्ता भी अचंभित हो जाते। बावजूद तमाम परेशानियों के उनके चेहरे पर कभी तनाव नजर नहीं आया करता था। वे जब भी कार्यकर्ताओं या आम लोगों के सामने आते तो उनके चेहरे पर सहज मुस्कान होती और यही मुस्कान उनके हजारों समर्थकों में अभूतपूर्व उत्साह का संचार कर देती। लंबे राजनैतिक जीवन में उन्होंने कभी किसी पर अनर्गल आरोप नहीं लगाए। कभी किसी के दिल को ठेस पहुंचाने वाली टिपण्णी नहीं की। यही वजह है कि कांग्रेस के साथ ही अन्य राजनैतिक दलों में भी उनके मित्र थे। छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण के संबंध में विद्याचरण शुक्ल का योगदान अविस्मरणीय था। उन्होंने बस्तर से लेकर सरगुजा तक यात्रा की जिसमे युवा वर्ग ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। दिल्ली में उन्होंने अपने हजारों समर्थकों के साथ गिरफ्तारी भी दी। कई वर्षों तक वे छत्तीसगढ़ संघर्ष मोर्चा के बैनरतले राज्य निर्माण के लिए संघर्ष करते रहे। राज्य बनने के बाद जब उन्हें लगा कि जिन उद्देश्यों के लिए छत्तीसगढ़ का निर्माण किया गया था उन्हीं उद्देश्यों की अनदेखी की जा रही है तो वे विरोध करने से भी नहीं चुके। छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़िया के हित की रक्षा के लिए उन्होंने कांग्रेस का परित्याग करने से भी परहेज नहीं किया। इसीलिए आज उनके चले जाने के बाद एक छत्तीसगढ़ की राजनीति में एक शून्य पैदा हो गया है। उनके हजारों समर्थक स्वयं को अनाथ महसूस कर रहे हैं। विद्याचरण शुक्ल के साथ वह स्वर्णिम दौर भी थम गया जिसके बगैर छत्तीसगढ़ के राजनीति का इतिहास अधुरा है। सच कहा जाए तो छत्तीसगढ़ की राजनीति में फिर कोई विद्या भैया पैदा होगा इसकी संभावना कम ही है।

Saturday, June 8, 2013

तोते की व्यथा...


-गौरव शर्मा "भारतीय"

मेरा नाम तोताराम है ! जी हाँ... मै वही तोताराम हूँ जो कल तक लोगों को उनका भविष्य बताया करता था। लचर प्रशासनिक तंत्र व कुछ भ्रष्ट नौकरशाहों की वजह से इन दिनों मै चर्चा में हूँ। हाल ही में देश के उच्चतम न्यायालय ने मेरी तुलना सीबीआई से कर दी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा टिप्पणी करने के बाद ही मै चर्चा में आया हूँ। इस टिप्पणी के बाद मीडिया ने मुझे सर आँखों पर बैठा लिया। लोग मेरी तस्वीरों के साथ प्रदर्शन करने लगे। स्वार्थ के सागर में गले तक डूब चुके कुछ लोगों ने तो मेरे नाम का प्रयोग करने के लिए कापीराईट कराने की भी तैयारी कर ली है। जो भी हो पर मुझे इस टिप्पणी से गहरा आघात पहुंचा है कि मेरी तुलना सीबीआई से की गई। अब आप ही बताइए, बार बार रंग बदलने वाले सीबीआई की तुलना मुझसे करना कहाँ तक उचित है ? कभी शेर की तरह दहाड़ने तो कभी चूहे की तरह भयभीत होने वाली सीबीआई की तुलना आखिर तोते से कैसे की जा सकती है ? जब-जब देश में सरकार बदलती है, सीबीआई गिरगिट की तरह रंग बदलती है। आश्चर्य है कि सीबीआई की तुलना मुझसे की जाती है जबकि न मै अवसरवादी हूँ और न पलायनवादी। मै तो कल तक लोगों को उनका भविष्य बताया करता था। `तपतकुरु` और `राम-राम` जप कर लोगों को हर क्षण ईश्वर के करीब होने का संदेश दिया करता था। और आज... मुझे एक कथा की याद आ रही है, एक बार किसी नगर में धर्मसभा का आयोजन हुआ। उसमे भाग लेने देश भर से विद्वतजन पहुंचे। मै भी अपने विद्वान स्वामी के साथ उस सभा में पहुंचा। जब मेरे स्वामी के बोलने का समय आया तो उन्होंने मुझे सामने कर दिया और कहा कि मुझसे अधिक विद्वान मेरा तोता है, सभा में यही शास्त्रार्थ करेगा। मैंने अपने स्वामी द्वारा सिखाई गई सारी बातें सभा में उपस्थित जनों को बताई। मैंने अमन का संदेश देकर सभी को स्तब्ध कर दिया, पर अफ़सोस उस समय मीडिया नहीं हुआ करता था इसलिए उसका अटेंशन नहीं मिला। सच कहूँ तो मेरी नाराजगी उच्चतम न्यायालय से नहीं है, मै नाराज हूँ उन दो कौड़ी के नेताओं से जिन्होंने मुझे एक दूसरे को नीचा दिखाने का माध्यम बना लिया है। मै नाराज हूँ तथ्यहीन खबर दिखाने व अनर्गल प्रलाप करने वाली मीडिया से जिसे हर ऐरी गैरी बात को ब्रेकिंग न्यूज़ बनाने की आदत है। मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि इसी वजह से मै अब शहरों व गावों में आसानी से नजर नहीं आता। इसी वजह से मै चुपचाप पिंजरे में पड़ा राम नाम जपता रहता हूँ। भले मेरी तुलना कोई सीबीआई से करे पर मै जनता हूँ कि मैंने आज तक किसी के साथ पक्षपात नहीं किया अपने स्वामी के हितों की रक्षा के लिए कभी किसी को डराया-धमकाया नहीं। मैंने तो हमेशा प्रेम, सद्भाव, संवेदनशीलता व एकता का पैगाम दिया है। न जाने लोग क्यों मेरी तुलना सीबीआई से कर मेरा अपमान करने पर अमादा हैं। खैर... मै तो गाँधी के सिद्धांतों पर चलने वाला तुच्छ प्राणी हूँ। ईश्वर से यही प्रार्थना कर सकता हूँ कि वे लोगों को सद्बुद्धि दे। गिरगिट की तरह रंग बदलने वाले सीबीआई को इतना हौसला दे कि वह भी मेरी तरह सच को सच और झूठ को झूठ कहने का सहस कर सके। आपने मेरी व्यथा-कथा को सुना इसलिए मै आप इंसानों का दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ। 

(विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित)