Friday, October 7, 2011

दुरी बस कुछ दिनों की...


जय हिंद, 
समस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा "भारतीय" की ओर से सादर प्रणाम, आदाब, सतश्री अकाल !!
सर्वप्रथम देरी से माफ़ी के साथ नवरात्री विजयादशमी की बधाई स्वीकार करें, तथा दीपावली की अग्रीम बधाई भी स्वीकार करें |
किंचित व्यस्तता के चलते आजकल ब्लॉग एवं ऑरकुट से थोड़ी दुरी सी बन गयी है पर मै आप सभी आशिर्वादकों, मार्गदर्शकों एवं मित्रों से कभी भी दूर नहीं हो सकता अतः आप मुझे मेरे मोबाईल न. 09301988885 तथा 09993168799 पर कभी भी संपर्क कर सकते हैं |
आशा ही नहीं वरन विशवास है की आपका स्नेह आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन पूर्व की भांति सदैव प्राप्त होता रहेगा | 
कुछ दिनों के लिए अपने गौरव को इज़ाज़त दें...

जय हिंद, जय भारत, जय अभियान भारतीय...!!

Sunday, July 10, 2011

यह कैसा विरोध ??

समस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा "भारतीय" की ओर से सादर नमस्कार, आदाब, सतश्री अकाल !!

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता लोकतंत्र का आधार होती है और यही स्वतंत्रता एक अच्छे शासन एवं प्रशासन की नीव भी होती है अतः अभिव्यक्ति का मर्यादित एवं संयमित होना भी बेहद आवश्यक है, वर्तमान समय में भारत में अमर्यादित टिप्पणियों एवं भाषणों का जैसे दौर ही चल पड़ा है और इस आग में घी का काम कर रहे हैं पक्ष विपक्ष द्वारा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से निर्मित राजनीतिज्ञों के काल्पनिक चित्र जो आजकल चारों ओर चर्चा का विषय बने हुए हैं | देखने में आ रहा है की फेसबुक एवं ऑरकुट जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स में नेताओं के फोटोस अपलोड किये जा रहे हैं जो की पुर्णतः काल्पनिक हैं जिन्हें भ्रष्टाचार एवं कुशाशन का विरोध दर्ज करने के उद्देश्य से ही अपलोड किये जा रहे हैं पर ये चित्र इतने अश्लील और अमर्यादित हैं की इन्हें देखकर कोई भी शर्म से लाल हो जाए | विरोध अगर मर्यादित हो, संयमित हो विश्वसनीय हो तभी वह सार्थक होता है अन्यथा उसका प्रतिकूल प्रभाव समाज एवं देश पर पड़ने लगता है आज ऐसा ही कुछ मुझे अपने देश में होता नजर आ रहा है जो घोर आपत्तिजनक है | भारत जैसे देश में जहाँ नारी की पूजा की जाती है वहां किसी भी नारी का अपमान किया जाना कहाँ तक जायज है साथ ही हम उन देशभक्तों का भी अपमान कर रहे हैं जो हमारे लिए दिनरात अनशन कर रहे हैं और जिनपर सच कहने की वजह से लाठियों भांजी जा रही हैं|
            कोई किसी के खिलाफ मर्यादाविहीन बातें कहता है तो दूसरा उससे भी असंयमित  भाषा में जवाब देता है और यह प्रक्रिया निरंतर बनी हुई है कई बात तो ऐसा प्रतीत होता है मानो मर्यादाविहीन बातों की प्रतियोगिता करायी जा रही हो | मेरा उद्देश्य किसी की आलोचना करना या समर्थन करना नहीं वरन भारतीय लोकतंत्र के मर्यादाओं को लगातार तार तार करती राजनीतिज्ञों की बोलियों एवं ऐसे मर्यादाविहीन चित्रों का प्रयोग कर विरोध दर्ज कराने की इस कुप्रथा को पोषित और पल्लवित होने से रोकना है क्योंकी हमारी संस्कार, हमारी संस्कृति और हमारी सभ्यता ही हमारी धरोहर है और अगर हम इस धरोहर की रक्षा नहीं कर सके तो निश्चित ही हमारी स्थिति अकल्पनीय होगी  अतः मै समस्त आत्मीय जनों से अनुरोध करता हूँ की जाने अनजाने में ऐसे मर्यादाविहीन चित्रों का ना प्रयोग करें और न ही इसका समर्थन करें........जय हिंद जय भारत !!

Sunday, June 12, 2011

मनोज भैया को जन्मदिन की बधाई...

समस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा "भारतीय" की ओर से सादर नमस्कार, आदाब, सतश्री अकाल !!

                       यूँ तो मेरे लिए हर दिन खास होता है पर आज का दिन मेरे लिए और भी खास है, आज मेरे प्रेरणाश्रोत, मेरे मार्गदर्शक आदरणीय मनोज कंदोई जी का जन्मदिवस है | मनोज भैया जिनका आशीर्वाद एवं मार्गदर्शन हमें हमेशा मिला करता है जिनसे हमें सकारात्मक ऊर्जा और अभूतपूर्व उत्साह की प्राप्ति होती है उन्हें आज के इस अवसर पर मै ढेर सारी बधाई एवं उनके स्वस्थ, दीर्घायु जीवन एवं उज्जवल भविष्य के लिए अशेष शुभकामनायें प्रेषित करता हूँ | वर्तमान में मनोज भैया रायपुर नगर के सर्वाधिक प्रतिष्ठित स्वामी विवेकानंद वार्ड के पार्षद एवं राजस्व विभाग नगर निगम रायपुर के अध्यक्ष हैं, आदरणीय मनोज भैया ने आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक क्षेत्रों में अपने सरल व्यवहार एवं कुशल नेतृत्व क्षमता के चलते जो लोकप्रियता हासिल की है वह वाकई काबिलेतारीफ है, विरोधी भी जिनके गुणों के कायल हैं ऐसे आदरणीय मनोज भैया अपने जादुई व्यकतित्व के चलते ही नगर के लोकप्रिय एवं प्रतिष्ठित जनप्रतिनिधियों की गिनती में अग्र पंक्ति में गिने जाते हैं |
                         वर्तमान समय में जब राजनीती और राजनीतिज्ञों पर न जाने कैसे कैसे सवाल उठ रहे हैं ऐसे समय में आदरणीय मनोज भैया ने अपने स्वच्छ छवि के माध्यम से यह साबित किया है की प्रत्येक राजनीतिज्ञ एक जैसा नहीं होता और आज भी राजनीती में स्वच्छ छवि के कर्मठ व्यक्ति मौजूद हैं जिनमे अपने नगर, अपने प्रदेश और अपने देश के लिए कार्य करने का जज्बा है | आडम्बर से कोशों दूर रहने वाले आदरणीय मनोज भैया सदैव सादगी और संजीदगी से अपना जीवन व्यतीत करते हैं, विपरीत परिस्थितयों का धैर्य के साथ सामना करने का स्वभाव वाकई उन्हें दूसरों से अलग करता है | जनता के दुःख दर्द और उनके परेशानियों को हल करने के लिए आदरणीय मनोज भैया सदैव तत्पर रहते हैं और मैंने शायद ही कभी ऐसा देखा हो की कोई भी व्यक्ति जो अपने किसी काम के लिए उनके पास गया हो और निराश होकर लौटा हो  वे हमेशा आम जनता की हरसंभव मदद के लिए तैयार रहते हैं | वर्तमान में जब राजनीती में अच्छे लोगों की कमी महसूस की जाने लगी हैं ऐसे समय में उदार ह्रदय के सरल और सुलभ राजनीतिज्ञ का होना वाकई सुखद है | 
मै पुनः इश्वर से कामना करता हूँ की आदरणीय भैया मनोज कंदोई जी को स्वस्थ, दीर्घायु जीवन एवं उज्जवल भविष्य प्रदान करें एवं आदरणीय मनोज भैया को यह विश्वास दिलाता हूँ की हर कदम पर हम आपके साथ हैं पुनः जन्मदिन की ढेर सारी बधाई एवं अशेष शुभकामनायें ..... 
बार बार दिन ये आये 
बार बार दिल ये गाये 
आप जियो हजारों साल ये मेरी है आरजू ...

Sunday, May 22, 2011

अपमान तिरंगे का............ आखिर दोषी कौन ?

समस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा "भारतीय" की ओर से सादर प्रणाम....
                         आज बड़े दिनों के बाद आप सब के समक्ष उपस्थित होने का अवसर मिला है, देरी के लिए माफ़ी चाहता हूँ | 
{ऐसे शर्मनाक हरकतों को अंजाम देते समय कहाँ चली जाती है हमारी देशभक्ति }
             तिरंगा..........जो हमारा राष्ट्रध्वज है, हमारी आन बान और शान का प्रतिक है, किसी भी देश का राष्ट्रध्वज उस देश के मान सम्मान और अस्मिता का प्रतिक होता है,  वह केवल ध्वज नहीं वरन देशवासियों के भावनाओं की अभिव्यक्ति होती है | पर बाअफ़सोस मुझे आज कहना पड़ रहा है की हम उसी तिरंगे के सम्मान करने के लायक नहीं रह गए हैं, हमारी देशभक्ति की भावना केवल राष्ट्रीय पर्वों में ही जागृत होती है और हम बड़े शान से तिरंगे से अपने चौक चौराहे और नगर को पाट देते हैं और राष्ट्रीय पर्वों के बाद..........हमारी देशभक्ति, हमारी राष्ट्रीयता की भावना न जाने कहाँ गुम हो जाती है और हम गाहे बगाहे उसी तिरंगे का अपमान करते फिरते है जिसे हमने ही बड़े शान से लगाया है |
{जरा सोचिये क्या वाकई हम "भारतीय" कहलाने के लायक है ?}
              समस्त आत्मीय जनों को मै बताना चाहता हूँ यह तस्वीर कल मैंने अपने नगर रायपुर के एक प्रतिष्ठित माने जाने वाले इलाके से ली है जहाँ मुक्कड़ पर भारत के राष्ट्रध्वज को बड़ी संख्या में आपत्तिजनक स्थिति में डाल दिया गया था | इसकी सुचना जब हमने खबर छत्तीसी ब्लॉग न्यूज़ {http://khabarchhattisi.blogspot.com/} एवं स्थानीय प्रशासन को दी तो उन्होंने इसे बड़ी तत्परता के साथ मुक्कड़ से उठाया | मै स्थानीय पार्षद महोदय एवं नगर निगम के अधिकारीयों को इसके लिए साधुवाद देता हूँ | प्रश्न यह है की आखिर राष्ट्रध्वज को मुक्कड़ में डालने का घिनौना हरकत कोई भी व्यक्ति कर कैसे सकता है ? क्या हमारी देशभक्ति मर गयी है या हमारी आस्था अब भारत में नहीं रह गयी है ? ऐसी तस्वीरें आजकल कमोबेश हर जगह आसानी से देखी जा सकती है |
                  जाने अनजाने में तिरंगे का अपमान हो रहा है कोई राष्ट्र ध्वज को मुक्कड़ में फेक रहा है तो कोई तिरंगे वाला केक काट रहा है | हमें इस बात पर अवश्य विचार करना चाहिए की आखिर ऐसा होता क्यों है ? आखिर क्यों हम राष्ट्र ध्वज को व्यवसाय का रूप देने में लगे हुए हैं ? मेरा शाशन प्रशासन में बैठे जिम्मेदार लोगों से यह प्रश्न है की आखिर क्यों हम कागज और झिल्लियों में बने तिरंगे पर पूर्ण प्रतिबन्ध नहीं लगाते जिससे इस प्रकार राष्ट्र ध्वज के अपमान को रोका जा सके ? साथ ही मै आम जन से भी विनम्र अपील करना चाहता हूँ की "मित्रों, तिरंगा हमारी आन बान और शान है और इसका स्थान सबसे ऊंचा ही अभीष्ट है. बेशक हम इसका इस्तेमाल गर्व से करें यह हमारा अधिकार है. लेकिन इसे इसे गर्व के साथ रखें भी, क्योंकि यही हमारा कर्तब्य है."
जयहिंद

Saturday, April 23, 2011

पर हमने भारत को क्या दिया....?

समस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा "भारतीय" के ओर से सादर प्रणाम !!
                       विगत दिनों मेरी बातचीत "भारत" एवं "भारतीयता" के विषय में नेट पर मित्रों से हो रही थी तभी एक मित्र ने मुझसे कहा यार जब देखो तुम केवल देश की ही बातें किया करते हो आखिर इस देश ने हमें दिया ही क्या है ? मित्र की इस बात को सुनकर मुझे तो ऐसा लगा मानो काटो तो खून नहीं, मै उचित जवाब उन्हें दे पाता इससे पहले ही किंचित कारणों से उनसे मेरी वार्तालाप बंद हो गयी | आज मन में विचार आया की न केवल उस परम मित्र को वरन ऐसा ही सोच रखने वाले लोगों को भी बताया जाये की भारत ने हमें क्या दिया है |
                      "भारत" जो "भाष" अर्थात प्रकाश की साधना में रत है, "भारत" जो न केवल भूमि का एक टुकड़ा है, "भारत" जो न केवल लोगों का एक समूह है,  "भारत" जो न केवल नदियों का संगम है, "भारत" जो न केवल एक राष्ट्र है वरन "भारत" हमारी आत्मा है, "भारत" हमारी भावना है, "भारत" हमारा प्राण है, "भारत" हमारी संस्कृति है, "भारत" हमारा संस्कार है, "भारत" हमारी आस्था, हमारी श्रद्धा, हमारी अस्मिता का प्रतिक है, "भारत" जो देश है अर्पण का,  "भारत" जो देश है तर्पण का, "भारत" जो देश है समर्पण का, "भारत" जो न केवल हमारा अभिमान है वरन "भारत" हर भारतीय की पहचान है,  "भारत" जो अनूठी संस्कृतियों का अनुपम मेल है, "भारत" जहाँ दो कोष में भाषा बदल जाती है और चार कोष में वेशभूषा बदल जाती है मगर फिर भी अनेकता में एकता की भारत से बढ़कर कोई मिशाल नहीं है, "भारत" वह देश जहाँ भगत सिंह फांसी के तख्ते को देश की आजादी के लिए हँसते हँसते चूम लेते हैं, "भारत" वो देश जहाँ चंद्रशेखर आज़ाद देश की अस्मिता के रक्षा के लिए आखिरी गोली खुद पर ही चला लेते हैं, "भारत" जहाँ जन्म लेना ही असीम गौरव का विषय है और ऐसे महान देश के विषय में आज हम कहते हैं की भारत ने हमें क्या दिया ? 
                            मित्रों आज हम यह प्रश्न करने के लिए भी भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, हमें ज्ञात होना चाहिए की विश्व में बोली जाने वाली लगभग चौदह हजार बोली, भाषा, और विभाषाओं को व्याकरण के चौदह सूत्र प्रदान किया महान ऋषि पाणनिय ने, जो "भारतीय" थे,  "भारत" जिसने धर्म और आध्यात्म के क्षेत्र में सम्पूर्ण विश्व को राह दिखाया है, विवेकानंद "भारतीय" थे जिन्होंने विश्व को धर्म की नवीन परिभाषा प्रदान की, शुन्य जिसकी खोज भारत से हुई जिसके बदौलत हमारा आज चाँद सितारों पर जाना मुमकिन हो पाया है याद करें आर्यभट "भारतीय" थे,  सत्य और अहिंसा की राह पर चलने का मार्ग जिन्होंने दुनिया के लिए प्रशस्त किया वे गाँधी जी "भारतीय" थे,  स्वास्थ्य एवं चिकत्सा के क्षेत्र में सर्वप्रथम पहल कर दुनिया को राह दिखाने वाले महान विद्वान धन्वन्तरी और चरक "भारतीय" थे |
                        मित्रों भारत के योगदान के विषय में हम जितना लिखें, जितना पढ़ें, जितना जानें, भारत के योगदान का जितना बखान करें वह कम है क्योंकि भारत विश्वगुरु के पद पर सदैव आसीन रहा है और गुरु का ज्ञान सदैव असीमित होता है, अपार होता है | पर अगर कोई व्यक्ति अपने गुरु को संदेह की दृष्टि से देखता है, उसकी क्षमताओं पर शक करता है तो मेरा मानना है की वह अपने विकास को अवरुद्ध करने की ओर पहला कदम रखता है और पतन की ओर अग्रसर होता है, हम कदापि ऐसा कृत्य न करें | बड़ा दुःख होता है जब कोई इस प्रकार का प्रश्न करता है की भारत ने हमें क्या दिया वह भी अगर देश का कोई भावी कर्णधार, कोई युवा कहता है तो वाकई बेहद पीड़ा होती है | ऐसे बेतुके प्रश्न करने वाले यह क्यों नहीं सोचते की "हमने भारत को क्या दिया है" अधिकार तो हमें याद रहता है पर अपने कर्तव्य हम भूल जाते हैं | जाने अनजाने में ही हम अपने देश अपने मातृभूमि का अपमान करते हैं और गर्व से अपने को "भारतीय" कहते फिरते हैं | जरा सोचिये क्या हम वाकई "भारतीय" कहलाने के लायक भी हैं ? मित्रों मेरी नजर में तो "भारतीय" वही है जो "भारत" को जानता है, "भारत" को पहचानता है और "भारत" को मानता है |      
                                               ***जय  हिंद जय भारत***               

Saturday, April 16, 2011

भारत रत्न कौन........?

 समस्त आत्मीय जन गौरव का सादर अभिवादन स्वीकार करें|
{सभी चित्र गूगल से साभार}
                   
            "भारत रत्न" देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान, जिसे प्राप्त करने की इच्छा हर भारतीय के दिल में होती है | पिछले कुछ दिनों से विभिन्न स्तरों पर विभिन्न व्यक्तियों एवं संस्थाओ के द्वारा लगातार यह मांग की जा रही है की क्रिकेट के बेताज बादशाह सचिन तेंडुलकर{आजकल इन्हें क्रिकेट के भगवान् भी कहा जाने लगा है}को शीघ्रातिशीघ्र "भारत रत्न" सम्मान प्रदान किया जाये और इस मांग पर शाशन के द्वारा भी गंभीरता से विचार किया जा रहा है | बेशक यह मांग जायज है और निश्चित रूप से सचिन तेंडुलकर इस सम्मान के हकदार भी हैं | उन्होंने जिस प्रकार अपने खेल जीवन में देश के लिए खेलते हुए जितनी उपलब्धियां हासिल की हैं तथा क्रिकेट जगत के अधिकाधिक रिकार्ड अपने नाम किये हैं वह वाकई प्रसंसनीय है | पर क्या हमें सचिन के अतिरिक्त "भारत रत्न" सम्मान हेतु अन्य नामों पर विचार नहीं किया जाना चाहिए ? क्या सचिन से पहले भारत के अन्य विभूतियों को इस सम्मान से नहीं नवाजा जाना चाहिए ? बेशक सचिन को "भारत रत्न" सम्मान दिया जाना चाहिए परन्तु सचिन तेंडुलकर से पूर्व "भारत रत्न" माँ भारती के उन सपूतों को प्रदान किया जाना चाहिए जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर माँ भारती के चरणों में प्राण त्याग दिए |
                           मित्रों जरा विचार कीजिये क्या "भारत रत्न" सम्मान पर पहला अधिकार उस शहीद भगत सिंह का नहीं है जिन्होंने सम्पूर्ण भारत वर्ष को क्रांति की नविन परिभाषा दी जिन्होंने फांसी के फंदे को ख़ुशी ख़ुशी चूमकर देश के लाखों करोड़ों नौजवानों को देशभक्ति का पाठ पढ़ा दिया ?  जरा सोचिये क्या "भारत रत्न" सम्मान पहले भगत सिंह को दिया जाना चाहिए अथवा किसी अन्य को, आज़ादी के इतने वर्षों तक क्यों हम माँ भारती के वीर सपूतों को यह सम्मान नहीं दे पाए उल्टा आजकल कुछ राजनीतिज्ञों द्वारा इन शहीदों की जातियों पर पर तरह तरह की बातें की जाने लगी है जरा सोचिये क्या यह न्यायोचित है ?
                 नेताजी शुभाष चन्द्र बोस को "भारत रत्न" सम्मान देने हेतु भारत की जनता द्वारा क्या मांग नहीं की गयी फिर क्यों नेताजी आजतक इस सम्मान से वंचित हैं ? क्या इस सम्मान पर उनका अधिकार पहले नहीं है ?  माँ भारती के इन वीर सपूतों के प्रति हमारा इतना उदासीन रुख क्यों ? बेशक हमारे शहीद किसी सम्मान के मोहताज़ नहीं पर क्या शाशन, प्रशाशन का यह कर्त्तव्य नहीं की इन शहीदों को सर्वप्रथम देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान दिया जाये | निश्चित रूप से शाशन प्रशासन की इस लापरवाही में हम भी उतने ही जिम्मेदार हैं, आज जितने शिद्दत से हम सचिन तेंडुलकर या अन्य किसी के लिए "भारत रत्न" की  मांग करते हैं क्या हमने अपने इन वीर शहीदों के लिए ऐसा किया है ?
                           मेरा उद्देश्य किसी का विरोध करना अथवा समर्थन करना नहीं वरन उन लोगों का ध्यान इन महान विभूतियों की ओर आकृष्ट करना है जिन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान "भारत रत्न" हेतु केवल एक ही नाम याद रहता है | ये मेरी भावनाएं हैं जिन्हें मैंने आपके समक्छ अभिव्यक्त किया है और मै समस्त आत्मीय जनों से इसपर उनके विचार सादर आमंत्रित करता हूँ |
                                                        ***जय हिंद जय भारत***

Thursday, April 7, 2011

आखिर कब तक ?

                                               जन्म के बाद जन्म प्रमाणपत्र के लिए रिश्वत 

                                     किसी अच्छे स्कूल में बच्चे को भर्ती करने के लिए रिश्वत 

                                                            नौकरी के लिए रिश्वत 

                                                           प्रमोशन के लिए रिश्वत 
                                    छोटे मोटे कामों के लिए जीवन भर अनगिनत रिश्वत 

                                 बुढ़ापे में सरकारी अस्पताल में इलाज़ कराने के लिए रिश्वत  

                                        मरने के बाद मृत्यु प्रमाणपत्र के लिए रिश्वत 
                                                                    
                 एक आम भारतीय की जिन्दगी में यही होता है, हर कदम पर रिश्वत देना पड़ता है | विदेशों में भी रिश्वत लिए जाते हैं, वहां भी भष्टाचार होते हैं, पर गलत कार्य करने के लिए और हमारे भारत में कार्य करने के लिए अर्थात कर्तव्यपालन के लिए भी रिश्वत लिए जाते हैं | नगर निगम और ग्राम पंचायत से लेकर संसद भवन तक भष्टाचार में शामिल है | देश का दुर्भाग्य है की देश के सबसे इमानदार कहे जाने वाले प्रधानमंत्री के नेतृत्व में देश का सबसे भ्रष्ट सरकार संचालित है | आज अनायाश एक शायर की एक पंक्ति याद आ रही है :-  "आज उन्ही के आशियाँ ए बागबां तुने उजाड़े हैं की जिनका लहू तक शामिल है तामीर ए गुलिश्तां में" भारत माता को किसी और ने नहीं उन्ही के सपूतों ने लुटा है और ऐसे लोगों पर कार्यवाही होना तो दूर वही लोग आज देश के कर्णधार बने बैठे हैं |
                  मै देश का एक आम नागरिक हूँ और मुझे भी यदाकदा इस प्रकार के भष्टाचार का सामना करना पड़ता है पर आखिर कब तक ? कब तक हम मौन होकर भष्टाचार को सहते रहें ? अब वक्त आ गया है, भष्टाचार के खिलाफ लड़ने का, एकजुट होने का, आम जनता की शक्ति को प्रदर्शित कर भ्रष्ट लोगों को सबक सिखाने का |
                   मै तो भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई में अन्ना हजारे और देश के करोड़ों लोगों के साथ हूँ और आप.....

Tuesday, March 15, 2011

अच्छी कैरियर की सार्थकता

समस्त आत्मीय जन गौरव का सादर  अभिवादन स्वीकार करें !!
                          आज मेरी मुलाकात बारहवीं की परीछा देकर विद्यालय  से बाहर आते कुछ छात्रों से हुयी | सभी अपने उत्तर और परीछा के विषय में आपस में चर्चा कर रहे थे, किसी का कहना था इस बार सरल प्रश्न आये थे तो कोई अपने पढ़े हुए प्रश्नों के न आने से उदास था कुल मिलकर माहौल खुशनुमा था | तभी एक समूह में खड़े छात्रों ने अपने भविष्य की योजनाओं पर वार्तालाप प्रारंभ किया | किसी ने कहा मुझे आयकर सलाहकार बनना है तो कोई इंजीनियरिंग करना चाहता था, किसी का कहना था की मुझे तो डॉक्टर ही बनना है | इसी बीच एक छात्र ने गौरवपूर्ण उत्साह के साथ कहा की मुझे तो सेना में जाना है, मै भारतीय सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहता हूँ !! बस उस छात्र के इतना कहते ही बाकि सभी छात्र उसपर टूट पड़े और कहने लगे ये तू क्या कह रहा है यार, ये सेना वेना में जाने से क्या फायदा, उसे बिच में ही रोककर दूसरा बोल उठा तू कोई अच्छा काम करने की सोच यार वैसे भी आजकल फौजियों की पहले जैसी इज्जत भी नहीं रही कहीं कोई सैनिक शहीद हो जाता है तो न्यूज़ चैनल वाले उसका नाम तक नहीं देते सिर्फ एक बार हेड लाइन आता है "कश्मीर में ४ जवान शहीद" कहाँ घर परिवार, ऐशोआराम छोड़कर दूर अकेला जीवन बिताएगा ऊपर से इस काम में खतरा भी बहुत है कहीं कुछ अनहोनी हो गयी तो जीवन भर का दर्द अलग..........!! तू अपने पैर में कुल्हाड़ी मत मार कोई अच्छी सी प्रोफैशनल कोर्स करके अच्छा सा जॉब कर और अपना कैरियर बना, इन सबमे कुछ नहीं रखा है | तभी माहौल में कुछ ख़ामोशी और भारीपन सा छा गया और सभी मिलते रहने के वादे के साथ अपने अपने घरों की ओर चल पड़े | 
                           मैंने जब से उन युवा साथियों की बातें सुनी उनके विचार जाना तभी से मन में यही सवाल बार बार आ रहा है की क्या देश की सेवा करने से भी अच्छी कोई जॉब हो सकती है ? क्या अब हमारे लिए अच्छा कैरियर और अच्छी इनकम सबकुछ और देश गौण हो गया है ? क्या वाकई में आजकल फौजियों की कोई इज्जत नहीं रह गयी है ? क्या भगत सिंह और आज़ाद के देश के जवान अब अपने देश के लिए शहादत देने से डरने लगे हैं ? मन में और भी कई सवाल आने लगे हैं कि क्यों ? आखिर ऐसा क्यों ?
                           जब मै जवाब तलाशने की कोशिश करता हूँ तो यहाँ पर भी अपना ही दोष नजर आने लगता है | उन युवाओं की बातें कमोबेश सच ही तो थीं, आखिर कितना सम्मान देते हैं हम अपने सैनिकों को, अपने शहीदों को और उनके परिजनों को ? क्या अंजाम होता है शहादत ? अरे हम तो उन शहीदों की ताबूतों में भी धोटाले करने से भी बाज नहीं आते जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण हँसते हँसते कुबान कर दिए और अब तो हमारे राजनीतिज्ञ शहीदों की शहादत पर भी राजनीती की रोटी सेंकने लगे हैं | इतना ही नहीं हम शहीदों के परिजनों को रोता बिलखता छोड़ देते हैं और यह जानने की कोशिश भी नहीं करते की उनके पास दो वक्त की रोटी भी है या नहीं |
                             मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल गए, नहीं भी मिले हैं तो मिल जायेंगे |  पर अगर यही हाल रहा तो अच्छी इनकम और अच्छे कैरियर की लालच में हमारे युवा विदेशों में बसने लग जायेंगे और हम बस उनकी राह तांकते रह जायेंगे | मै अपने युवा साथियों से भी यह कहना चाहता हूँ कि क्या हमारे लिए पैसा ही सबकुछ है ? क्या अच्छी नौकरी, अच्छा व्यापार करना और सफल होना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य है ? क्या हमारे लिए अपनी मर्तुभूमि अपने वतन अपने भारत की कोई कीमत नहीं ? आखिर क्यों हम कतराते हैं देश के लिए अपना योगदान देने में ? मेरे कहने का अर्थ यह बिलकुल नहीं है की हमसब सेना में भर्ती हो जाएँ | पर हम देश के विकास की मुख्यधारा से जुड़कर अपने सामर्थ्य के अनुरूप योगदान तो दे ही सकते हैं और हमें यह भी विचार करना चाहिए की अगर आज हम पलायनवादी रुख अपनाते हैं तो जरा सोचिये क्या हमारी आने वाली पीढ़ी क्या हमें माफ़ कर पायेगी और उस आखिर उस कैरियर की सार्थकता क्या होगी जिसे हमने देश, समाज, परिवार की कीमत चुकाकर प्राप्त किया होगा ?
                                                             जय हिंद जय भारत 
                                                    ***********************

Saturday, March 5, 2011

हम सुधरेंगे जग सुधरेगा

समस्त आत्मीय जनों को देरी की माफ़ी के साथ सादर प्रणाम,
                   आजकल ऑरकुट, फेसबुक पर हमारे कुछ देशभक्त युवा मित्रगण "क्रांति" और "संघर्ष" का नारा बुलंद कर रहे हैं | यह प्रयास देश की वर्तमान हालात से व्यथित और दुखित होकर किया जा रहा है, युवा साथियों का देश के प्रति गंभीर चिंतन काबिलेतारीफ और स्वागतयोग्य है उनकी देशभक्ति पूर्ण भावनाओं पर भी हमें गर्व है पर अब सवाल यह है की क्या वर्तमान में भारत में किसी "संघर्ष" अथवा "क्रांति" की आवश्यकता है क्या ? बेशक भारत में "संघर्ष" अथवा "क्रांति" की आवश्कता है पर मिश्र की तर्ज पर हम भी सड़कों में उतर जाएँ और संवैधानिक तंत्रों पर सवाल उठायें यह कतई उचित प्रतीत नहीं होता | हम भारतीय हैं, हमारा लोकतंत्र पर विश्वास और आस्था अभी कायम है अतः अगर हम क्रांति या संघर्ष की बात करते भी हैं तो उसका का स्वरुप लोकतान्त्रिक और वैचारिक होना चाहिए | अर्थात हमें क्रांति की आवश्कता है वह भी वैचारिक क्रांति | समय के अनुसार लोगों को जागृत करने की आवश्कता है, आवश्कता है, एक स्वस्थ भारत के निर्माण की जो भय भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त हो, जहाँ सभी को कागज पर नहीं वास्तव में सामान अधिकार प्राप्त हो | पर क्या यह हम सड़कों पर उतर कर या नारे लगाकर कर सकते हैं...मेरे विचार से तो बिलकुल भी नहीं | हम अगर भारत के नवनिर्माण का स्वप्न देखते हैं तो भारत के अंदाज़ में देखना होगा मिस्र या अन्य देशों से भारत की तुलना करने की हमें कोई आवश्कता नहीं |
                           हम निश्चित रूप से वर्तमान में देश के हालात से दुखी हैं और हमारा यह दुःख आक्रोश में भी परिवर्तित होने लगा है पर यही वह समय है जब हमें जोश से नहीं होश से काम लेना है और हर वर्ग को भारत के जागरूक कर देश के विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है | हम सभी को यह भी विचार करना चाहिए की हम भारतीय क्या अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हो रहे है ? क्या हम अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग रहे हैं ? आइये जरा हम विचार करें - क्या हम अपने नगर अपने प्रदेश अपने देश को साफ़ रखने के लिए कोई योगदान दे पाते हैं........? नहीं बल्कि हम गंदगी फैलाते हैं और दोष देते हैं प्रशासन को | क्या हम नियम कायदों से बचने या गलत काम करवाने के लिए के लिए रिश्वत नहीं देते........देते हैं, और कहते हैं की देश में भ्रष्टाचार दिन रात बढ़ रहा है | क्या हम राष्ट्रीय संपत्ति का ध्यान रखते हैं......नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संपत्ति को खुद छति पहुंचाते हैं और दोष देते हैं सरकार को | ये तो केवल आत्मचिंतन एवं आत्म दर्शन के लिए कुछ उदाहरण मात्र हैं पर हमारे द्वारा दिनरात इस प्रकार की न जाने कितनी ही हरकतें जाने अनजाने में ही की जाती है और दोष हम देते हैं दूसरों को, अब जरा सोचिये क्या यह उचित है ? क्या देश की दुर्दशा के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या दोष देने के अलावा हम कोई सार्थक कार्य कर पाए हैं ?
                           मै इस पोस्ट के माध्यम से केवल अपने काबिल युवा साथियों से यही कहना चाहता हूँ की आइये, अब हम एक प्रयास करें आम जनता को जागरूक करने का और इसकी शुरुआत करें अपने से, संकल्प लें हम कोई कार्य करने से पहले यह अवश्य विचार करें की क्या यह कार्य नैतिक, न्यायिक और उचित है ? हमारे कार्यों से किसी को कोई कष्ट तो नहीं हो रहा है ? हम कहीं जाने अनजाने में अपनी राष्ट्रीय संपत्ति को छति तो नहीं पहुंचा रहे हैं ? स्वार्थवश भ्रष्टाचार को बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं ? भूलवश ही सही पर हमारा कोई कार्य राष्ट्र विरोधी तो नहीं है ? क्या हम अपने पद का दुरूपयोग कर किसीभी व्यक्ति से कोई अनितिक काम तो नहीं करवा रहे हैं भले ही वह काम छोटा या बड़ा ही क्यों न हो ?
                             "जब हम सुधरेंगे, तब जग सुधरेगा" आज इस वाक्य को हमें सार्थक करना होगा | उपरोक्त बातों पर जब हम ध्यान देने लग जायेंगे और जब हमारे भीतर सुधार आएगा तो अन्य लोग भी स्वतः अपने भीतर सुधार करने का प्रयास करेंगे, संभव है की इस प्रक्रिया में अधिक समय लगे पर जब हम जागरूक हो गए, हमारी जनता जागृत हो गयी, अनुशाषित हो गयी तो भारत देश को विश्वगुरु का पद पुनः प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता अतः हमें क्रांति सुधार के रूप में लानी होगी संघर्ष स्वयं की खामियों से करना होगा और तभी हमारी क्रांति हमारा संघर्ष सार्थक और सफल होगा, हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर सकेंगे तभी हमारा संकल्प पूर्ण होगा तो आइये मित्रों शुरुआत हम आज से और स्वयं से करें...
                                                          बहुत हुए आपस के विवाद
                                                          मिला हमें दुःख? अवसाद?
                                                          आओ मिलकर लें संकल्प
                                                           रहेगा भारत सदा आबाद.
                                                      ***********************   
                                                              जय हिंद जय भारत
                                                      ***********************

Friday, February 18, 2011

उज्जवल भविष्य का आधार - जनगणना

समस्त सम्माननीय आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा भारतीय की और से सादर प्रणाम, आदाब, सतश्री अकाल !!
{चित्र गूगल से साभार}
                         आज मै किसी विषय पर चिंतन करने नहीं वरन समस्त आत्मीय जनों से एक महत्वपूर्ण निवेदन लेकर उपस्थित हूँ | सर्वविदित है कि भारत कि जनगणना 2011  प्रारंभ हो चुकी है और 9 से 28  फरवरी तक यह चलेगी और अब जनगणना के लिए कुछ ही दिन शेष रह गए हैं | जनगणना हमारे और हमारे देश के उज्जवल भविष्य के निर्माण की एक आवश्यक प्रक्रिया है |अतः हम समस्त भारत वासियों का कर्त्तव्य है की हम भारत की जनगणना 2011  में अवश्य शामिल होवें और अपनी तथा अपने परिवार की सही सही जानकारी गणकों को उपलब्ध कराएँ | विदित हो की हमारे द्वारा प्रदत्त समस्त जानकारी गोपनीय रखी जाएगी | 
                            मै पुनः सादर अपील करता हूँ की अपने तथा अपने देश के उज्जवल भविष्य के लिए जनगणना 2011 में अवश्य शामिल होवें जिससे देश की जनसँख्या, नागरिकों के रहन सहन जैसी और भी महत्वपूर्ण जानकारियां हमारे शासन प्रशासन तक पहुँच सके और भावी नीति निर्माण में हमारे द्वारा प्रदत्त जानकारियां सहायक हो सकें साथ ही यह भी अपील है की अगर आपकी जानकारी में किसी व्यक्ति अथवा परिवार तक गणकों का दल नहीं पहुंचा हो तो कृपया उन्हें अपने नजदीकी जनगणना कार्यालय से संपर्क करने कहें और  अपने आसपास के लोगों को भी जनगणना में शामिल होने कहें | 
                                    ध्यान रहे एक भी व्यक्ति छूटना नहीं चाहिए ...

Monday, February 14, 2011

वेलेंटाइन डे और युवा ...

ससस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा की ओर से सादर प्रणाम !!
{चित्र गूगल से साभार}
                    युवा किसी भी राष्ट्र की शक्ति होते हैं और विशेषकर भारत जैसे महान राष्ट्र की उर्जा तो युवाओं में ही निहित है अतः राष्ट्रीय परिदृश्य में युवाओं की भूमिका स्वतः सिद्ध है, पर जब वही युवा पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण के फेर में देश की संस्कृति, सभ्यता और अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों से दूर होकर वेलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे जैसे और भी न जाने ऐसे कितने बेतुके तथाकथित दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाते नजर आते हैं और उन्ही युवाओं को जब राष्ट्रीय महत्त्व के दिन भी याद नहीं रहते तो मन में यह सवाल अवश्य आता है कि आखिर हमारे युवा कहाँ जा रहे हैं ? और कहाँ जा रहा है हमारा देश ? कैसे हम इन पथभ्रष्ट युवाओं को अपनी शक्ति अपनी ,उर्जा का श्रोत मान सकते हैं और कैसे  इनके बल पर देश के विकास का स्वप्न देख सकते हैं ? निश्चित रूप से हम सभी को इस विषय में गंभीरता से विचार करना होगा अन्यथा स्थिति अकल्पनीय होगी |
{चित्र गूगल से साभार}
                   हम अगर अपने इतिहास में जाएँ तो इस बात का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिलता की श्री कृष्ण ने सुदामा जी को "हैप्पी फ्रेंडशिप डे" कहा हो या राधा जी को "हैप्पी वेलेंटाइन डे" कहा हो पर आज संसार में श्री कृष्ण और सुदामा जी की दोस्ती और राधाकृष्ण का प्रेम आदर्श माना जाता है |  कहने का तात्पर्य यह है की प्रेमाभिव्यक्ति अथवा भावाभिव्यक्ति हेतु किसी नियत तिथि या दिवस की आवश्यकता नहीं होती, आवश्यकता होती है तो केवल रिश्तों में मिठास की और ह्रदय में अपनापन की, आत्मीयता की जिसे अभिव्यक्त करने के लिए हम किसी तिथि  के मोहताज नहीं | कहना आवश्यक है विदेशों में रिश्तों में अपनापन और आत्मीयता गौण है पर फिर भी उनके लिए इसे प्रदर्शित करना आवश्यक होता है | वे आज एक व्यक्ति के साथ अगर वेलेंटाइन डे मना रहे हैं तो आवश्यक नहीं की आगामी डे भी इसी व्यक्ति के साथ मना सकेंगे और हमारे देश में रिश्ते जन्म जन्मान्तर तक निभाए जाते हैं क्योंकी हमारे रिश्ते खोखले नहीं हैं, उनमे संवेदनशीलता है, विश्वास है, अपनापन है, आत्मीयता है | विदेशों में मदर्स डे, फादर्स डे का भी प्रचलन है क्योंकी वहां संयुक्त परिवार की प्रथा नहीं एकल परिवार की प्रथा प्रचलित है एक निश्चित समय के उपरांत माँ बाप अपने बेटों से और बेटे अपने माँ बाप से अलग जीवन व्यतीत करते हैं अतः वे एक दिन अपने माता पिता के प्रति प्रेम अथवा सम्मान की भावना को प्रदर्शित करते हैं जबकि हमारे देश में श्रवण कुमार और श्री राम जी जैसे पुत्र होते हैं जिन्हें अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने की कतई आवश्कता नहीं होती |
                    वर्तमान समय की आवश्कता है की हम पाश्चात्य संकृति के अन्धानुकरण को त्यागकर अपने संस्कार, अपनी संस्कृति को आत्मसात करें तथा अपने भारत को पतन की ओर अग्रसर होने से रोकें यही हमारा कर्त्तव्य है | मै स्वयं युवा हूँ और मेरा उद्देश्य युवा वर्ग को कटघरे में खड़ा करना नहीं वरन उन्हें गलत राश्तों पर जाने से रोकना है उन्हें देश के विकास की मुख्यधारा से जोड़कर राष्ट्रहित में समुचित योगदान देने हेतु प्रेरित करना है |
                                                            जय हिंद जय भारत

Wednesday, February 9, 2011

माया की यह कैसी माया ...

{चित्र गूगल से साभार}

वन्दे मातरम, समत आत्मीय जन आपके अपने गौरव का सादर अभिवादन स्वीकार करें !!
                      राजनीति और चाटुकारिता का चोली दामन का साथ सर्वविदित है | राजनीती और राजनीतिज्ञों में चाटुकारिता हमेशा से  महत्वपूर्ण स्थान पर रही है पर एक निश्चित सीमा तक यह सिमित रहे तो सहनीय हो सकता है पर कभी कभी पानी सर से ऊपर हो जाता है जिसके परिणाम घातक और अकल्पनीय होते हैं | जीवित व्यक्ति की मूर्ति और नोटों की माला तक तो सब कुछ ठीक ठाक था पर आज एक नया मामला सामने आया है, अपनी चरण पादुका को एक उच्चाधिकारी से साफ़ कराने का, और इस पर भी हद तो तब हो गयी जब मैडम माया की इस माया को भी बड़ी बेबाकी या बेशर्मी के साथ "सामान्य घटना" निरुपित किया जाने लगा |  यह विचारणीय है की कब तक हम मूकदर्शक बने ऐसी स्थिति का सामना करते रहेंगे और कब तक हमारे ये तथाकथित नेता इस प्रकार की हरकतों को अंजाम देते रहेंगे | जो व्यक्ति अपना ध्यान स्वयं नहीं रख सकते उससे हम कैसे यह उम्मीद करते हैं कि वे हमारे प्रदेश, हमारे देश, हमारी गरीब जनता, हमारे ऐतिहासिक पौराणिक धरोहरों का ध्यान रखेंगे, क्या उनसे विकास की अपेक्छा करना हमारी कमजोरी, हमारी लाचारी का परिचायक नहीं है ? इन प्रश्नों पर आज देश के प्रत्येक नागरिक को विचार करने की आवश्यकता है मुझे यह कहने में कतई संकोच नहीं कि न केवल विचार करने की वरन उचित निर्णय लेने की भी आवश्यकता है |

{चित्र गूगल से साभार}
                        हम लोकतान्त्रिक देश के बाशिंदे हैं हमारी आस्था लोकतंत्र में है और सदा रहेगी पर इसका यह अर्थ कतई नहीं है की हम असत्य का, अधर्म का, अन्याय का विरोध नहीं कर सकते | देश की वर्तमान परिदृश्य की आवश्यकता के अनुरूप प्रत्येक नागरिक को अब जागरूक होना होगा और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाना होगा क्योंकि केवल नेताओं के बारे में टिपण्णी करने, उन्हें और उनकी नीतियों को भला बुरा कहने से स्थितियों में परिवर्तन की आशा करना व्यर्थ है | अब हमें स्वयं के विकास के साथ ही देश के विकास के विषय में भी चिंतन करना होगा और ऐसे नेताओं को हमें मुहतोड़ जवाब देना होगा, अपने सबसे प्रभावी हथियार का सार्थक उपयोग ही हमारा जवाब होगा और हमारा यह प्रभावी हथियार है हमारा वोट | हमें संकल्प लेना होगा की अपने वोट का अपने मत का सदुपयोग कर हम ऐसे घृणित कृत्यों को अंजाम देने वाले नेताओं को कभी सत्तासीन नहीं होने देंगे | मै यहाँ यह स्पष्ट अवश्य करना चाहूँगा की मेरा उद्देश्य किसी राजनैतिक दल अथवा राजनीतिज्ञ का विरोध करना नहीं वरन देश की जनता विशेषकर राष्ट्र शक्ति युवा वर्ग को जागरूक कर उनसे राष्ट्र के विकास की मुख्य धारा में शामिल होने की अपील करना है |
                           जय हिंद जय भारत 

Tuesday, January 25, 2011


 वन्दे मातरम,
आज गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर मै आपका अपना गौरव शर्मा "भारतीय" समस्त आत्मीय जनों को हार्दिक बधाई एवं अशेष शुभकामनायें सादर प्रेषित करता हूँ | 
आज देश की राजनैतिक परिस्थितियों को देखकर मन बेहद खिन्न है | देश में राष्ट्रीय ध्वज फहराने के नाम पर जो राजनीति की जा रही है वह घृणित है, निंदनीय है | अगर कोई व्यक्ति या संगठन देश के किसी भाग में राष्ट्रीय ध्वज फहराना चाहता है तो इसमें क्या आपत्ति है ? क्या अब राष्ट्रीय ध्वज फहराने के लिए या राष्ट्र गान गाने के लिए भी हमें उमर अब्दुल्ला की अनुमति लेनी होगी ? 
            मै किसी व्यक्ति अथवा राजनैतिक दल का समर्थन या विरोध कदापि नहीं करना चाहता पर एक आम भारतीय होने के नाते यह अवश्य कहना चाहता हूँ की अगर ऐसी परिस्थिति में भी हम एक जुट न हुए, हर भेदभाव, हर बंधन को त्यागकर केवल "भारतीय" बनकर "भारतीयता" के एकमात्र सूत्र में बंधकर देश के तथाकथित कर्णधारों को मुहतोड़ जवाब नहीं दिए तो आने वाला समय हमारे लिए अकल्पनीय होगा | 
            आज की परिस्थिति में यह बेहद आवश्यक है की हम दृढ संकल्पित होकर देश के विकास की मुख्यधारा से जुड़कर अपना योगदान देश के विकास में प्रदान करें एवं अपने महान भारत वर्ष  को "विश्वगुरु" के स्थान पर पुनः प्रतिष्ठित करें | मुझ अकिंचन की और से पुनः गणतंत्र दिवस के पवन अवसर पर हादिक बधाई एवं अनंत शुभकामनायें स्वीकार करें |
                                    जय हिंद, जय भारत

Wednesday, January 19, 2011

उठो जागो और आगे बढ़ो

               समस्त आत्मीय जन मुझ अकिंचन की ओर से शत शत वंदन एवं नववर्ष की अशेष शुभकामनायें स्वीकार करें | आजकल  देश की स्थिति को देखकर मन बड़ा खिन्न है | भय, भूख, भ्रष्टाचार और महंगाई सर्वत्र विराजमान है जनता त्राहिमाम त्राहिमाम कर कराह रही है और देश के कर्णधार भी अपनी डफली अपना राग की तर्ज पर नित्य नयी बात कर देश की जनता को बरगलाने में बड़े तन्मयता के साथ लगे हैं | रोज अख़बारों में महंगाई बढ़ने का एक नया कारण सामने आने लगा है कोई कहता है की गठबंधन धर्म निभाने के चक्कर में महंगाई बढ़ी है तो किसी का कहना है की किसान विभिन्न वस्तुओं की कीमत स्वयं तय करता है अतः "मंत्री एवं मंत्रालय" का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है इस मामले में हद तो तब हो गयी जब महंगाई की मार से ग्रस्त और त्रस्त हो चुकी जनता को सरकार के एक नुमाइंदे ने ये सुझाव दे दिया कि सस्ता खाकर महंगाई से निपटा जा सकता है अब सवाल यह है की क्या केवल खाने से ही महंगाई से निपटा जा सकता है ? निश्चित रूप से यह बात विचार करने पर सत्य ही लगता है की कम खाने या सस्ता खाने से महंगाई की समस्या ख़त्म हो सकती है पर यह बात जनता के लिए नहीं बल्कि उनके लिए लागु होती है जो इस प्रकार की बेतुकी बात करते हैं वाकई वे लोग अगर "खाना"(रिश्वतखोरी) बंद कर दें तो समस्या ख़त्म हो न हो पर कम तो अवश्य हो जाएगी | सर्व विदित है कि हमारे देश की गरीब जनता प्याज़ और रोटी खाकर ही गुजरा करती है  पर दुर्भाग्य से उसी प्याज़ ने आज लोगों कि आँखों में आँशु ला दिया है | बाजारों में वर्ग संघर्ष स्पष्ट दृष्टिगत होने लगा है आजकल लोग प्याज़ और महँगी सब्जियां अपना रुतबा दिखने के लिए खरीदने लगे हैं और उन्हें देखकर गरीब बेचारा अपने किस्मत को कोसने लगता है |
                           पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों ने तो सारे हदों को पार कर दिया है और इसीलिए आजकल अच्छे अच्छे लोग "पैदल" नजर आने लगे हैं कुछ बुद्धिजीवियों के द्वारा बाकायदा सायकल को "राष्ट्रीय सवारी" घोषित करने की मांग भी जोर शोर से प्रारंभ की जा चुकी है | निश्चित रूप से यह मांग जायज़ भी है क्योंकि अब पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण तो रहा नहीं ऐसी स्थिति में क्या भरोसा कल को दाम 100 रूपये प्रति लीटर या उससे भी अधिक कर दिए जाएँ, भुगतना तो आखिर जनता को ही है देश के तथाकथित खास लोगों को तो इंधन "फ़ोकट" में मिलता है | वाकई आज देश की हालत को देखकर रोना आता है और तथाकथित कर्णधारों पर गुस्सा, कितनी विषमता है हमारे देश में जहाँ एक ओर करोड़ों अरबों के घोटाले हो रहे हैं वहीँ दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती | आज यह तय कर पाना मुस्किल हो गया है की सरकार का काम क्या है ? केवल भष्टाचार में लिप्त रहना या एक के बाद एक गलत निर्णय लेना ही सरकार की प्राथमिकता है वह भी तब जब सरकार की कमान एक बेहद पाक साफ़ छवि के विद्वान अर्थशास्त्री के हाथों में है न जाने कोई और प्रधानमंत्री होता तो देश की स्थिति शायद इससे भी दयनीय हो जाती |
                             बर्बाद गुलिस्तां करने को तो एक ही उल्लू काफी था
                             हर साख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा                                                                     यह भी गौरतलब है की आदर्श हाऊसिंग सोसाइटी को तीन माह के भीतर तोड़ने का आदेश भी दे दिया गया है क्योंकि इसका निर्माण पर्यावरण सम्बन्धी नियमों को ताक में रखकर किया गया | विचारणीय है की उस समय जब इसका निर्माण किया जा रहा था तब क्या माननीय पर्यावरण मंत्री और उनका मंत्रालय कुम्भकर्णी निद्रा में थे ? और अब जागे हैं जब इस आलिशान और भव्य ईमारत का निर्माण पूर्ण हो चूका है | क्या इस ईमारत को तोडना राष्ट्रीय छति नहीं होगी ? उन शहीदों और उनके परिजनों के भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होगी ? केवल एक व्यक्ति को उसके पद से हटाकर या इस ईमारत को तोड़कर आखिर हम साबित क्या करना चाहते हैं ? क्या हम यह साबित करना चाहते हैं की हम कितने इमानदार हैं या फिर हम यह साबित करना चाहते हैं कि हमारे लिए राष्ट्रीय संपत्ति की कोई कीमत नहीं है |
                             वाकई उपरोक्त सभी बातों पर विचार करें तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है की आज हमारे जनप्रतिनिधि और उनकी सरकार के नैतिक मूल्यों का विघटन हो चूका है इनका एक मात्र एजेंडा नोट कमाना और अपनी जेबें भरना रह गया है इनके बयानों से भी अब यह लगने लगा कि मानो ये दम्भी नेता सत्ता के  मद में चूर होकर कह रहे हों :-
                                                        मस्त रहो मस्ती में, 
                                                         आग लगे बस्ती में
 आज देश की स्थिति को देखकर भारत माँ के उन सपूतों की जिन्होंने देश की आज़ादी में अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया उनकी आत्मा भी रोती होगी वे यह विचार करते होंगे की क्या इसी दिन के लिए भारत को आज़ाद कराया था हमने इससे अच्छा तो अंग्रेजों का शाशन था कम से कम वे बेगाने होकर भी इतना नहीं लुटते थे जितना आज हमारे अपने हमारे देश को लुट रहे हैं | शायद वे यही सोचते होंगे :-
                                         हमें तो अपनों ने लुटा गैरों में कहाँ दम था
                                      अपनी कश्ती तो वहीँ डूबी जहाँ पानी कम था
अब देश की आम जनता को जागना होगा क्योंकि देश के ये कर्णधार न जाने कब देश को बेच दें माँ भारती के सपूतों को फिर से संघर्ष प्रारंभ कर देना होगा आज फिर से देश के जवानों को भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद की भूमिका में आना होगा तभी इस देश में शुशासन की कल्पना क जा सकेगी |
                                                         जय हिंद, जय भारत