समस्त आत्मीय जन गौरव का सादर अभिवादन स्वीकार करें !!
आज मेरी मुलाकात बारहवीं की परीछा देकर विद्यालय से बाहर आते कुछ छात्रों से हुयी | सभी अपने उत्तर और परीछा के विषय में आपस में चर्चा कर रहे थे, किसी का कहना था इस बार सरल प्रश्न आये थे तो कोई अपने पढ़े हुए प्रश्नों के न आने से उदास था कुल मिलकर माहौल खुशनुमा था | तभी एक समूह में खड़े छात्रों ने अपने भविष्य की योजनाओं पर वार्तालाप प्रारंभ किया | किसी ने कहा मुझे आयकर सलाहकार बनना है तो कोई इंजीनियरिंग करना चाहता था, किसी का कहना था की मुझे तो डॉक्टर ही बनना है | इसी बीच एक छात्र ने गौरवपूर्ण उत्साह के साथ कहा की मुझे तो सेना में जाना है, मै भारतीय सेना में जाकर देश की सेवा करना चाहता हूँ !! बस उस छात्र के इतना कहते ही बाकि सभी छात्र उसपर टूट पड़े और कहने लगे ये तू क्या कह रहा है यार, ये सेना वेना में जाने से क्या फायदा, उसे बिच में ही रोककर दूसरा बोल उठा तू कोई अच्छा काम करने की सोच यार वैसे भी आजकल फौजियों की पहले जैसी इज्जत भी नहीं रही कहीं कोई सैनिक शहीद हो जाता है तो न्यूज़ चैनल वाले उसका नाम तक नहीं देते सिर्फ एक बार हेड लाइन आता है "कश्मीर में ४ जवान शहीद" कहाँ घर परिवार, ऐशोआराम छोड़कर दूर अकेला जीवन बिताएगा ऊपर से इस काम में खतरा भी बहुत है कहीं कुछ अनहोनी हो गयी तो जीवन भर का दर्द अलग..........!! तू अपने पैर में कुल्हाड़ी मत मार कोई अच्छी सी प्रोफैशनल कोर्स करके अच्छा सा जॉब कर और अपना कैरियर बना, इन सबमे कुछ नहीं रखा है | तभी माहौल में कुछ ख़ामोशी और भारीपन सा छा गया और सभी मिलते रहने के वादे के साथ अपने अपने घरों की ओर चल पड़े |
मैंने जब से उन युवा साथियों की बातें सुनी उनके विचार जाना तभी से मन में यही सवाल बार बार आ रहा है की क्या देश की सेवा करने से भी अच्छी कोई जॉब हो सकती है ? क्या अब हमारे लिए अच्छा कैरियर और अच्छी इनकम सबकुछ और देश गौण हो गया है ? क्या वाकई में आजकल फौजियों की कोई इज्जत नहीं रह गयी है ? क्या भगत सिंह और आज़ाद के देश के जवान अब अपने देश के लिए शहादत देने से डरने लगे हैं ? मन में और भी कई सवाल आने लगे हैं कि क्यों ? आखिर ऐसा क्यों ?
जब मै जवाब तलाशने की कोशिश करता हूँ तो यहाँ पर भी अपना ही दोष नजर आने लगता है | उन युवाओं की बातें कमोबेश सच ही तो थीं, आखिर कितना सम्मान देते हैं हम अपने सैनिकों को, अपने शहीदों को और उनके परिजनों को ? क्या अंजाम होता है शहादत ? अरे हम तो उन शहीदों की ताबूतों में भी धोटाले करने से भी बाज नहीं आते जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण हँसते हँसते कुबान कर दिए और अब तो हमारे राजनीतिज्ञ शहीदों की शहादत पर भी राजनीती की रोटी सेंकने लगे हैं | इतना ही नहीं हम शहीदों के परिजनों को रोता बिलखता छोड़ देते हैं और यह जानने की कोशिश भी नहीं करते की उनके पास दो वक्त की रोटी भी है या नहीं |
मुझे मेरे सवालों के जवाब मिल गए, नहीं भी मिले हैं तो मिल जायेंगे | पर अगर यही हाल रहा तो अच्छी इनकम और अच्छे कैरियर की लालच में हमारे युवा विदेशों में बसने लग जायेंगे और हम बस उनकी राह तांकते रह जायेंगे | मै अपने युवा साथियों से भी यह कहना चाहता हूँ कि क्या हमारे लिए पैसा ही सबकुछ है ? क्या अच्छी नौकरी, अच्छा व्यापार करना और सफल होना ही हमारा एकमात्र उद्देश्य है ? क्या हमारे लिए अपनी मर्तुभूमि अपने वतन अपने भारत की कोई कीमत नहीं ? आखिर क्यों हम कतराते हैं देश के लिए अपना योगदान देने में ? मेरे कहने का अर्थ यह बिलकुल नहीं है की हमसब सेना में भर्ती हो जाएँ | पर हम देश के विकास की मुख्यधारा से जुड़कर अपने सामर्थ्य के अनुरूप योगदान तो दे ही सकते हैं और हमें यह भी विचार करना चाहिए की अगर आज हम पलायनवादी रुख अपनाते हैं तो जरा सोचिये क्या हमारी आने वाली पीढ़ी क्या हमें माफ़ कर पायेगी और उस आखिर उस कैरियर की सार्थकता क्या होगी जिसे हमने देश, समाज, परिवार की कीमत चुकाकर प्राप्त किया होगा ?
जय हिंद जय भारत
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जय हिंद जय भारत
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