समस्त आत्मीय जन मुझ अकिंचन की ओर से शत शत वंदन एवं नववर्ष की अशेष शुभकामनायें स्वीकार करें | आजकल देश की स्थिति को देखकर मन बड़ा खिन्न है | भय, भूख, भ्रष्टाचार और महंगाई सर्वत्र विराजमान है जनता त्राहिमाम त्राहिमाम कर कराह रही है और देश के कर्णधार भी अपनी डफली अपना राग की तर्ज पर नित्य नयी बात कर देश की जनता को बरगलाने में बड़े तन्मयता के साथ लगे हैं | रोज अख़बारों में महंगाई बढ़ने का एक नया कारण सामने आने लगा है कोई कहता है की गठबंधन धर्म निभाने के चक्कर में महंगाई बढ़ी है तो किसी का कहना है की किसान विभिन्न वस्तुओं की कीमत स्वयं तय करता है अतः "मंत्री एवं मंत्रालय" का इस पर कोई नियंत्रण नहीं है इस मामले में हद तो तब हो गयी जब महंगाई की मार से ग्रस्त और त्रस्त हो चुकी जनता को सरकार के एक नुमाइंदे ने ये सुझाव दे दिया कि सस्ता खाकर महंगाई से निपटा जा सकता है अब सवाल यह है की क्या केवल खाने से ही महंगाई से निपटा जा सकता है ? निश्चित रूप से यह बात विचार करने पर सत्य ही लगता है की कम खाने या सस्ता खाने से महंगाई की समस्या ख़त्म हो सकती है पर यह बात जनता के लिए नहीं बल्कि उनके लिए लागु होती है जो इस प्रकार की बेतुकी बात करते हैं वाकई वे लोग अगर "खाना"(रिश्वतखोरी) बंद कर दें तो समस्या ख़त्म हो न हो पर कम तो अवश्य हो जाएगी | सर्व विदित है कि हमारे देश की गरीब जनता प्याज़ और रोटी खाकर ही गुजरा करती है पर दुर्भाग्य से उसी प्याज़ ने आज लोगों कि आँखों में आँशु ला दिया है | बाजारों में वर्ग संघर्ष स्पष्ट दृष्टिगत होने लगा है आजकल लोग प्याज़ और महँगी सब्जियां अपना रुतबा दिखने के लिए खरीदने लगे हैं और उन्हें देखकर गरीब बेचारा अपने किस्मत को कोसने लगता है |
पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों ने तो सारे हदों को पार कर दिया है और इसीलिए आजकल अच्छे अच्छे लोग "पैदल" नजर आने लगे हैं कुछ बुद्धिजीवियों के द्वारा बाकायदा सायकल को "राष्ट्रीय सवारी" घोषित करने की मांग भी जोर शोर से प्रारंभ की जा चुकी है | निश्चित रूप से यह मांग जायज़ भी है क्योंकि अब पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण तो रहा नहीं ऐसी स्थिति में क्या भरोसा कल को दाम 100 रूपये प्रति लीटर या उससे भी अधिक कर दिए जाएँ, भुगतना तो आखिर जनता को ही है देश के तथाकथित खास लोगों को तो इंधन "फ़ोकट" में मिलता है | वाकई आज देश की हालत को देखकर रोना आता है और तथाकथित कर्णधारों पर गुस्सा, कितनी विषमता है हमारे देश में जहाँ एक ओर करोड़ों अरबों के घोटाले हो रहे हैं वहीँ दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती | आज यह तय कर पाना मुस्किल हो गया है की सरकार का काम क्या है ? केवल भष्टाचार में लिप्त रहना या एक के बाद एक गलत निर्णय लेना ही सरकार की प्राथमिकता है वह भी तब जब सरकार की कमान एक बेहद पाक साफ़ छवि के विद्वान अर्थशास्त्री के हाथों में है न जाने कोई और प्रधानमंत्री होता तो देश की स्थिति शायद इससे भी दयनीय हो जाती |
बर्बाद गुलिस्तां करने को तो एक ही उल्लू काफी था
हर साख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा यह भी गौरतलब है की आदर्श हाऊसिंग सोसाइटी को तीन माह के भीतर तोड़ने का आदेश भी दे दिया गया है क्योंकि इसका निर्माण पर्यावरण सम्बन्धी नियमों को ताक में रखकर किया गया | विचारणीय है की उस समय जब इसका निर्माण किया जा रहा था तब क्या माननीय पर्यावरण मंत्री और उनका मंत्रालय कुम्भकर्णी निद्रा में थे ? और अब जागे हैं जब इस आलिशान और भव्य ईमारत का निर्माण पूर्ण हो चूका है | क्या इस ईमारत को तोडना राष्ट्रीय छति नहीं होगी ? उन शहीदों और उनके परिजनों के भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होगी ? केवल एक व्यक्ति को उसके पद से हटाकर या इस ईमारत को तोड़कर आखिर हम साबित क्या करना चाहते हैं ? क्या हम यह साबित करना चाहते हैं की हम कितने इमानदार हैं या फिर हम यह साबित करना चाहते हैं कि हमारे लिए राष्ट्रीय संपत्ति की कोई कीमत नहीं है |
वाकई उपरोक्त सभी बातों पर विचार करें तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है की आज हमारे जनप्रतिनिधि और उनकी सरकार के नैतिक मूल्यों का विघटन हो चूका है इनका एक मात्र एजेंडा नोट कमाना और अपनी जेबें भरना रह गया है इनके बयानों से भी अब यह लगने लगा कि मानो ये दम्भी नेता सत्ता के मद में चूर होकर कह रहे हों :-
मस्त रहो मस्ती में,
आग लगे बस्ती में
आज देश की स्थिति को देखकर भारत माँ के उन सपूतों की जिन्होंने देश की आज़ादी में अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया उनकी आत्मा भी रोती होगी वे यह विचार करते होंगे की क्या इसी दिन के लिए भारत को आज़ाद कराया था हमने इससे अच्छा तो अंग्रेजों का शाशन था कम से कम वे बेगाने होकर भी इतना नहीं लुटते थे जितना आज हमारे अपने हमारे देश को लुट रहे हैं | शायद वे यही सोचते होंगे :-
जय हिंद, जय भारत
पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों ने तो सारे हदों को पार कर दिया है और इसीलिए आजकल अच्छे अच्छे लोग "पैदल" नजर आने लगे हैं कुछ बुद्धिजीवियों के द्वारा बाकायदा सायकल को "राष्ट्रीय सवारी" घोषित करने की मांग भी जोर शोर से प्रारंभ की जा चुकी है | निश्चित रूप से यह मांग जायज़ भी है क्योंकि अब पेट्रोल और डीज़ल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण तो रहा नहीं ऐसी स्थिति में क्या भरोसा कल को दाम 100 रूपये प्रति लीटर या उससे भी अधिक कर दिए जाएँ, भुगतना तो आखिर जनता को ही है देश के तथाकथित खास लोगों को तो इंधन "फ़ोकट" में मिलता है | वाकई आज देश की हालत को देखकर रोना आता है और तथाकथित कर्णधारों पर गुस्सा, कितनी विषमता है हमारे देश में जहाँ एक ओर करोड़ों अरबों के घोटाले हो रहे हैं वहीँ दूसरी ओर ऐसे भी लोग हैं जिन्हें दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती | आज यह तय कर पाना मुस्किल हो गया है की सरकार का काम क्या है ? केवल भष्टाचार में लिप्त रहना या एक के बाद एक गलत निर्णय लेना ही सरकार की प्राथमिकता है वह भी तब जब सरकार की कमान एक बेहद पाक साफ़ छवि के विद्वान अर्थशास्त्री के हाथों में है न जाने कोई और प्रधानमंत्री होता तो देश की स्थिति शायद इससे भी दयनीय हो जाती |
बर्बाद गुलिस्तां करने को तो एक ही उल्लू काफी था
हर साख पे उल्लू बैठा है अंजामे गुलिस्तां क्या होगा यह भी गौरतलब है की आदर्श हाऊसिंग सोसाइटी को तीन माह के भीतर तोड़ने का आदेश भी दे दिया गया है क्योंकि इसका निर्माण पर्यावरण सम्बन्धी नियमों को ताक में रखकर किया गया | विचारणीय है की उस समय जब इसका निर्माण किया जा रहा था तब क्या माननीय पर्यावरण मंत्री और उनका मंत्रालय कुम्भकर्णी निद्रा में थे ? और अब जागे हैं जब इस आलिशान और भव्य ईमारत का निर्माण पूर्ण हो चूका है | क्या इस ईमारत को तोडना राष्ट्रीय छति नहीं होगी ? उन शहीदों और उनके परिजनों के भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं होगी ? केवल एक व्यक्ति को उसके पद से हटाकर या इस ईमारत को तोड़कर आखिर हम साबित क्या करना चाहते हैं ? क्या हम यह साबित करना चाहते हैं की हम कितने इमानदार हैं या फिर हम यह साबित करना चाहते हैं कि हमारे लिए राष्ट्रीय संपत्ति की कोई कीमत नहीं है |
वाकई उपरोक्त सभी बातों पर विचार करें तो यह स्पष्ट प्रतीत होता है की आज हमारे जनप्रतिनिधि और उनकी सरकार के नैतिक मूल्यों का विघटन हो चूका है इनका एक मात्र एजेंडा नोट कमाना और अपनी जेबें भरना रह गया है इनके बयानों से भी अब यह लगने लगा कि मानो ये दम्भी नेता सत्ता के मद में चूर होकर कह रहे हों :-
मस्त रहो मस्ती में,
आग लगे बस्ती में
आज देश की स्थिति को देखकर भारत माँ के उन सपूतों की जिन्होंने देश की आज़ादी में अपना सबकुछ कुर्बान कर दिया उनकी आत्मा भी रोती होगी वे यह विचार करते होंगे की क्या इसी दिन के लिए भारत को आज़ाद कराया था हमने इससे अच्छा तो अंग्रेजों का शाशन था कम से कम वे बेगाने होकर भी इतना नहीं लुटते थे जितना आज हमारे अपने हमारे देश को लुट रहे हैं | शायद वे यही सोचते होंगे :-
हमें तो अपनों ने लुटा गैरों में कहाँ दम था
अपनी कश्ती तो वहीँ डूबी जहाँ पानी कम था
अब देश की आम जनता को जागना होगा क्योंकि देश के ये कर्णधार न जाने कब देश को बेच दें माँ भारती के सपूतों को फिर से संघर्ष प्रारंभ कर देना होगा आज फिर से देश के जवानों को भगत सिंह और चंद्रशेखर आज़ाद की भूमिका में आना होगा तभी इस देश में शुशासन की कल्पना क जा सकेगी |जय हिंद, जय भारत
वि्चारोत्तेजक आलेख है।
ReplyDeleteइस पर सभी को चिंतन करना चाहिए।
(ब्लॉग पर नित्य लिखिए)
छेर छेरा पुन्नी के गाड़ा गाड़ा बधाई
बिलकुल सच्ची और खरी बात लिखी आपने। समय रहते उचित नहीं लेते फिर स्वयं को इमानदार साबित करने की कोशिश में और भी गलत निर्णय लेते हैं। काश सता में बैठे नेताओं का आम जनता से भी कोई सरोकार होता।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर, तथ्यपरक आलेख गौरव.... पैनी होती दृष्टी के लिए साधुवाद... आभार.
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