Saturday, November 13, 2010

स्वतंत्रता किस रूप में...

{चित्र गूगल से साभार}

वन्दे मातरम,
         समस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा "भारतीय" की ओर से आदाब, सतश्री अकाल, सादर प्रणाम  !!

              हमारा भारत वर्ष विश्व का महान राष्ट्र है जहाँ सभी को अपनी बातों को कहने की स्वतंत्रता संविधान के माध्यम से प्रदान की गयी है, जिसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता कहा जाता हैं और हम इस संवैधानिक व्यवस्था का ह्रदय से सम्मान करते हैं | लोकतंत्र में यह आवश्यक भी है की प्रत्येक नागरिक को सामान रूप से स्वतंत्रता और भावाभिव्यक्ति का अधिकार प्रदान किया जाये  पर वर्तमान में घटित कुछ घटनाओं पर नजर डालने पर अनायास ही मन में यह सवाल उत्पन्न होता है की स्वतंत्रता किस रूप में और किस स्तर तक प्रदान किया जाना चाहिए | वर्तमान में दृष्टिगत हो रहा है की कुछ तथाकथित देशभक्त, लेखक, राजनीतिज्ञ, कलाकार और भी न जाने कैसे कैसे लोग जिनके मन में जो भी आया बेखटके कह जाते हैं और वह भी बिना सोचे समझे की उनकी कही बात का जन सामान्य पर क्या असर हो सकता है | निश्चित रूप से आज मिडिया और प्रसारण तंत्र भी दिन प्रतिदिन अधिक शक्तिशाली होती जा रही है और उन बातों को भी प्रसारित करने से नहीं चुकती जिन्हें प्रसारित नहीं किया जाना चाहिए, मिडिया के माध्यम से तत्काल लोगों के द्वारा कहे जाने वाले अनावश्यक बयान और टिपण्णी भी कुछ ही समय में देशभर में प्रसारित हो जाती है और प्रारंभ हो जाता है आरोप-प्रत्यारोप और वाद विवाद का सिलसिला और कुछ मामलों में तो बात दंगे फसाद तक जा पहुँचती है, इससे  नुकसान अगर किसी का होता है तो बेचारे जन सामान्य का जिसका इन सभी विवादों से दूर दूर तक कोई नाता नहीं होता है| अगर इस निरंकुश स्वतंत्रता के अधिकार के कारण देश जल उठता है और जन धन की हानी बेवजह ही होती है तो हमें विचार करना होगा की यह कहाँ तक न्यायोचित है | वर्तमान समय की आवश्यकता है की हमें इन विषयों पर चिंतन कर सार्थक निष्कर्ष तक पहुंचना होगा |
                       विगत दिनों में ऐसे कई मामले दृष्टिगत होते हैं जिनमे आवेश में आकर बेहद गैर जिम्मेदार रवैये के साथ किसी भी मंच से कुछ भी कह दिया गया उदाहरण के रूप में हम बुकर अवार्ड से सम्मानित लेखिका अरुंधती राय या चाल, चरित्र और चेहरे की बात करने वाले और स्वयं को सबसे बड़ा देशभक्त संगठन मानने वाले आर. एस. एस. के पूर्व प्रमुख सुदर्शन जी को ले सकते हैं | इनके द्वारा दिए गए बयानों में किसी भी प्रकार की सार्थकता या देश की समस्याओं के प्रति चिता का भाव तो कतई नहीं है वरन देश को बाँटने और विवाद उत्पन्न करने वाले भाव अवश्य हैं | कभी कभी तो मन में यह सवाल आता है की क्या सच में ऐसे तत्व देशभक्त हो सकते हैं ? क्या वाकई इनके मन में देश के लिए सकारात्मक विचार झें ? कैसे कोई व्यक्ति किसी मंच से कश्मीर के विषय में विवादस्पद बयान दे सकता है और कैसे कोई अनुभवी व्यक्ति देश की एक सम्मानित महिला के खिलाफ अनावश्यक, अनर्गल एवं असंसदीय टिपण्णी कर सकता है |
                          मुझे बचपन में सुनी हुई एक कहानी याद आ रही है जिसका उल्लेख मै यहाँ अवश्य करना चाहूँगा, एक बार एक चीटी हाथी के पीठ में बैठकर कहीं जा रही होती है और वह उससे बार बार एक ही सवाल कर रही होती है की देखो तुम्हे कोई तकलीफ तो नहीं हो रही है न ? बोलो तो मै उतर जाती हूँ ? हाथी उसकी बात समझ नहीं पाता, अब रास्ते में एक पुल आने वाला होता है और फिर से चीटी हाथी से उसके कान के बेहद करीब  जाकर पूछती है, देखो पुल आने वाला है अभी भी वक्त है तुम कहो तो मै उतर जाती हूँ हाथी बेचारा भिनभिनाहट के अलावा कुछ भी समझ नहीं पाता है, दरअसल वह चीटी अपने होने का अहसास करना चाहती थी, अपने "अस्तित्व का अहसास" आज हमारे तथाकथित देशभक्त, राजनीतिज्ञ और भी न जाने कैसे कैसे लोग यही कर रहे हैं वे भी अपने होने का, अपने अस्तित्व का अहसास करना चाहते हैं | यहाँ मुख्य रूप से दो बिंदु विचारणीय है, प्रथम:- क्या किसी भी व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर कहीं भी कुछ भी बोलने का अधिकार होना चाहिए ? द्वितीय :- क्या मिडिया और प्रसारण तंत्र को स्वतंत्रता के नाम पर कुछ भी दीखाने का अधिकार होना चाहिए जिससे देश में नकारात्मक प्रभाव भी क्यों न उत्पन्न हो ?
                  मेरा उद्देश्य किसी की आलोचना करना या किसी संवैधानिक व्यवस्था पर प्रश्नचिन्ह लगाना कतई नहीं है, पर जब हमारे देश के तथाकथित चिन्तक पथभ्रष्ट हो जाते हैं और टी. आर. पी. और पैसा कमाने  के लिए टेलीविजन चैनलों पर कुछ भी समाचार एवं कार्यक्रम दिखाया जाता है {कहने में मुझे कोई संकोच नहीं है की इस मामले में कलर्स चैनल और उसके कार्यक्रम "बिग बोस" ने तो इस मामले में  हद ही कर दिया है } तो एक आम भारतीय होने के नाते पीड़ा होती है | मेरा उद्देश्य इन मामलों पर सार्थक चिंतन करना है जिससे हमारे महान देश की संस्कृति को तार तार होने से बचाया जा सके और तथाकथित लोगों पर अंकुश लग  सके | मै अपने समस्त आत्मीय जनों से विनम्र अपील करता हूँ की इस विषय पर अपनी महत्वपूर्ण राय से अवश्य अवगत कराएँ |
"जय हिंद जय भारत"

6 comments:

  1. .

    गौरव जी,
    हमारे चैनलों ने हदें तोड़ दी हैं। सुधार की गुंजाइश नज़र नहीं आती । हर चैनल पर अश्लीलता परोसना अब फैशन सा हो गया है। शायद निर्देशकों एवं दर्शकों की मानसिकता ही विकृत हो गयी है। अफ़सोस होता है।

    .

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  2. एक गंभीर मुद्दे पर चर्चा करने के लिए साधुवाद... गौरव जी, शायद हममें सहिष्णुता कम होती जा रही है. हम कर्म नहीं वाक्य वीर होते जा रहे हैं वह भी अनरगल... राजनीती आज स्पष्ट रूप से बाजनीती बन गयी है... सकारात्मक चिंतन के लिए पुनः साधुवाद.

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  3. सार्थक चिंतन है ...आज कल टी० वी० पर रियल्टी शो तो सारी हद पार कर रहे हैं ..बस के ० बी० सी० ही एक कार्यक्रम है जो देखना अच्छा लगता है ....विचारणीय पोस्ट ..


    कृपया वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया

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  4. विचारणीय पोस्ट सकारात्मक चिंतन के लिए साधुवाद

    "जय हिंद जय भारत"

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