समस्त आत्मीय जनों को देरी की माफ़ी के साथ सादर प्रणाम,
आजकल ऑरकुट, फेसबुक पर हमारे कुछ देशभक्त युवा मित्रगण "क्रांति" और "संघर्ष" का नारा बुलंद कर रहे हैं | यह प्रयास देश की वर्तमान हालात से व्यथित और दुखित होकर किया जा रहा है, युवा साथियों का देश के प्रति गंभीर चिंतन काबिलेतारीफ और स्वागतयोग्य है उनकी देशभक्ति पूर्ण भावनाओं पर भी हमें गर्व है पर अब सवाल यह है की क्या वर्तमान में भारत में किसी "संघर्ष" अथवा "क्रांति" की आवश्यकता है क्या ? बेशक भारत में "संघर्ष" अथवा "क्रांति" की आवश्कता है पर मिश्र की तर्ज पर हम भी सड़कों में उतर जाएँ और संवैधानिक तंत्रों पर सवाल उठायें यह कतई उचित प्रतीत नहीं होता | हम भारतीय हैं, हमारा लोकतंत्र पर विश्वास और आस्था अभी कायम है अतः अगर हम क्रांति या संघर्ष की बात करते भी हैं तो उसका का स्वरुप लोकतान्त्रिक और वैचारिक होना चाहिए | अर्थात हमें क्रांति की आवश्कता है वह भी वैचारिक क्रांति | समय के अनुसार लोगों को जागृत करने की आवश्कता है, आवश्कता है, एक स्वस्थ भारत के निर्माण की जो भय भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त हो, जहाँ सभी को कागज पर नहीं वास्तव में सामान अधिकार प्राप्त हो | पर क्या यह हम सड़कों पर उतर कर या नारे लगाकर कर सकते हैं...मेरे विचार से तो बिलकुल भी नहीं | हम अगर भारत के नवनिर्माण का स्वप्न देखते हैं तो भारत के अंदाज़ में देखना होगा मिस्र या अन्य देशों से भारत की तुलना करने की हमें कोई आवश्कता नहीं |
हम निश्चित रूप से वर्तमान में देश के हालात से दुखी हैं और हमारा यह दुःख आक्रोश में भी परिवर्तित होने लगा है पर यही वह समय है जब हमें जोश से नहीं होश से काम लेना है और हर वर्ग को भारत के जागरूक कर देश के विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है | हम सभी को यह भी विचार करना चाहिए की हम भारतीय क्या अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हो रहे है ? क्या हम अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग रहे हैं ? आइये जरा हम विचार करें - क्या हम अपने नगर अपने प्रदेश अपने देश को साफ़ रखने के लिए कोई योगदान दे पाते हैं........? नहीं बल्कि हम गंदगी फैलाते हैं और दोष देते हैं प्रशासन को | क्या हम नियम कायदों से बचने या गलत काम करवाने के लिए के लिए रिश्वत नहीं देते........देते हैं, और कहते हैं की देश में भ्रष्टाचार दिन रात बढ़ रहा है | क्या हम राष्ट्रीय संपत्ति का ध्यान रखते हैं......नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संपत्ति को खुद छति पहुंचाते हैं और दोष देते हैं सरकार को | ये तो केवल आत्मचिंतन एवं आत्म दर्शन के लिए कुछ उदाहरण मात्र हैं पर हमारे द्वारा दिनरात इस प्रकार की न जाने कितनी ही हरकतें जाने अनजाने में ही की जाती है और दोष हम देते हैं दूसरों को, अब जरा सोचिये क्या यह उचित है ? क्या देश की दुर्दशा के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या दोष देने के अलावा हम कोई सार्थक कार्य कर पाए हैं ?
मै इस पोस्ट के माध्यम से केवल अपने काबिल युवा साथियों से यही कहना चाहता हूँ की आइये, अब हम एक प्रयास करें आम जनता को जागरूक करने का और इसकी शुरुआत करें अपने से, संकल्प लें हम कोई कार्य करने से पहले यह अवश्य विचार करें की क्या यह कार्य नैतिक, न्यायिक और उचित है ? हमारे कार्यों से किसी को कोई कष्ट तो नहीं हो रहा है ? हम कहीं जाने अनजाने में अपनी राष्ट्रीय संपत्ति को छति तो नहीं पहुंचा रहे हैं ? स्वार्थवश भ्रष्टाचार को बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं ? भूलवश ही सही पर हमारा कोई कार्य राष्ट्र विरोधी तो नहीं है ? क्या हम अपने पद का दुरूपयोग कर किसीभी व्यक्ति से कोई अनितिक काम तो नहीं करवा रहे हैं भले ही वह काम छोटा या बड़ा ही क्यों न हो ?
"जब हम सुधरेंगे, तब जग सुधरेगा" आज इस वाक्य को हमें सार्थक करना होगा | उपरोक्त बातों पर जब हम ध्यान देने लग जायेंगे और जब हमारे भीतर सुधार आएगा तो अन्य लोग भी स्वतः अपने भीतर सुधार करने का प्रयास करेंगे, संभव है की इस प्रक्रिया में अधिक समय लगे पर जब हम जागरूक हो गए, हमारी जनता जागृत हो गयी, अनुशाषित हो गयी तो भारत देश को विश्वगुरु का पद पुनः प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता अतः हमें क्रांति सुधार के रूप में लानी होगी संघर्ष स्वयं की खामियों से करना होगा और तभी हमारी क्रांति हमारा संघर्ष सार्थक और सफल होगा, हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर सकेंगे तभी हमारा संकल्प पूर्ण होगा तो आइये मित्रों शुरुआत हम आज से और स्वयं से करें...
बहुत हुए आपस के विवाद
मिला हमें दुःख? अवसाद?
आओ मिलकर लें संकल्प
रहेगा भारत सदा आबाद.
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जय हिंद जय भारत
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आजकल ऑरकुट, फेसबुक पर हमारे कुछ देशभक्त युवा मित्रगण "क्रांति" और "संघर्ष" का नारा बुलंद कर रहे हैं | यह प्रयास देश की वर्तमान हालात से व्यथित और दुखित होकर किया जा रहा है, युवा साथियों का देश के प्रति गंभीर चिंतन काबिलेतारीफ और स्वागतयोग्य है उनकी देशभक्ति पूर्ण भावनाओं पर भी हमें गर्व है पर अब सवाल यह है की क्या वर्तमान में भारत में किसी "संघर्ष" अथवा "क्रांति" की आवश्यकता है क्या ? बेशक भारत में "संघर्ष" अथवा "क्रांति" की आवश्कता है पर मिश्र की तर्ज पर हम भी सड़कों में उतर जाएँ और संवैधानिक तंत्रों पर सवाल उठायें यह कतई उचित प्रतीत नहीं होता | हम भारतीय हैं, हमारा लोकतंत्र पर विश्वास और आस्था अभी कायम है अतः अगर हम क्रांति या संघर्ष की बात करते भी हैं तो उसका का स्वरुप लोकतान्त्रिक और वैचारिक होना चाहिए | अर्थात हमें क्रांति की आवश्कता है वह भी वैचारिक क्रांति | समय के अनुसार लोगों को जागृत करने की आवश्कता है, आवश्कता है, एक स्वस्थ भारत के निर्माण की जो भय भूख और भ्रष्टाचार से मुक्त हो, जहाँ सभी को कागज पर नहीं वास्तव में सामान अधिकार प्राप्त हो | पर क्या यह हम सड़कों पर उतर कर या नारे लगाकर कर सकते हैं...मेरे विचार से तो बिलकुल भी नहीं | हम अगर भारत के नवनिर्माण का स्वप्न देखते हैं तो भारत के अंदाज़ में देखना होगा मिस्र या अन्य देशों से भारत की तुलना करने की हमें कोई आवश्कता नहीं |
हम निश्चित रूप से वर्तमान में देश के हालात से दुखी हैं और हमारा यह दुःख आक्रोश में भी परिवर्तित होने लगा है पर यही वह समय है जब हमें जोश से नहीं होश से काम लेना है और हर वर्ग को भारत के जागरूक कर देश के विकास की मुख्यधारा से जोड़ना है | हम सभी को यह भी विचार करना चाहिए की हम भारतीय क्या अपने कर्तव्यों से विमुख नहीं हो रहे है ? क्या हम अपनी जिम्मेदारियों से नहीं भाग रहे हैं ? आइये जरा हम विचार करें - क्या हम अपने नगर अपने प्रदेश अपने देश को साफ़ रखने के लिए कोई योगदान दे पाते हैं........? नहीं बल्कि हम गंदगी फैलाते हैं और दोष देते हैं प्रशासन को | क्या हम नियम कायदों से बचने या गलत काम करवाने के लिए के लिए रिश्वत नहीं देते........देते हैं, और कहते हैं की देश में भ्रष्टाचार दिन रात बढ़ रहा है | क्या हम राष्ट्रीय संपत्ति का ध्यान रखते हैं......नहीं, बल्कि राष्ट्रीय संपत्ति को खुद छति पहुंचाते हैं और दोष देते हैं सरकार को | ये तो केवल आत्मचिंतन एवं आत्म दर्शन के लिए कुछ उदाहरण मात्र हैं पर हमारे द्वारा दिनरात इस प्रकार की न जाने कितनी ही हरकतें जाने अनजाने में ही की जाती है और दोष हम देते हैं दूसरों को, अब जरा सोचिये क्या यह उचित है ? क्या देश की दुर्दशा के लिए हम जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या दोष देने के अलावा हम कोई सार्थक कार्य कर पाए हैं ?
मै इस पोस्ट के माध्यम से केवल अपने काबिल युवा साथियों से यही कहना चाहता हूँ की आइये, अब हम एक प्रयास करें आम जनता को जागरूक करने का और इसकी शुरुआत करें अपने से, संकल्प लें हम कोई कार्य करने से पहले यह अवश्य विचार करें की क्या यह कार्य नैतिक, न्यायिक और उचित है ? हमारे कार्यों से किसी को कोई कष्ट तो नहीं हो रहा है ? हम कहीं जाने अनजाने में अपनी राष्ट्रीय संपत्ति को छति तो नहीं पहुंचा रहे हैं ? स्वार्थवश भ्रष्टाचार को बढ़ावा तो नहीं दे रहे हैं ? भूलवश ही सही पर हमारा कोई कार्य राष्ट्र विरोधी तो नहीं है ? क्या हम अपने पद का दुरूपयोग कर किसीभी व्यक्ति से कोई अनितिक काम तो नहीं करवा रहे हैं भले ही वह काम छोटा या बड़ा ही क्यों न हो ?
"जब हम सुधरेंगे, तब जग सुधरेगा" आज इस वाक्य को हमें सार्थक करना होगा | उपरोक्त बातों पर जब हम ध्यान देने लग जायेंगे और जब हमारे भीतर सुधार आएगा तो अन्य लोग भी स्वतः अपने भीतर सुधार करने का प्रयास करेंगे, संभव है की इस प्रक्रिया में अधिक समय लगे पर जब हम जागरूक हो गए, हमारी जनता जागृत हो गयी, अनुशाषित हो गयी तो भारत देश को विश्वगुरु का पद पुनः प्राप्त करने से कोई नहीं रोक सकता अतः हमें क्रांति सुधार के रूप में लानी होगी संघर्ष स्वयं की खामियों से करना होगा और तभी हमारी क्रांति हमारा संघर्ष सार्थक और सफल होगा, हम अपने सपनों के भारत का निर्माण कर सकेंगे तभी हमारा संकल्प पूर्ण होगा तो आइये मित्रों शुरुआत हम आज से और स्वयं से करें...
बहुत हुए आपस के विवाद
मिला हमें दुःख? अवसाद?
आओ मिलकर लें संकल्प
रहेगा भारत सदा आबाद.
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जय हिंद जय भारत
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बहुत हुए आपस के विवाद
ReplyDeleteमिला हमें दुःख? अवसाद?
आओ मिलकर लें संकल्प
रहेगा भारत सदा आबाद.
Very nice. i want to add dear as:
गुणों में भेद जीवन में भेद
शैली में भेद गति में भी भेद
आकृति में भेद प्रकृति में भेद
भेदों के बीच सब एक-'अभेद'.
वैर न जाने कहाँ खो गया..?
मिटा वैर और प्रेम हो गया.
हे भोले! तुम सन्देश सुनाते
स्नेह सद्भाव का पाठ पढ़ाते
काश आप से सीख हम पाते.
.जीवन में अपने इसे निभाते.
इतनी कठिन परीक्षा न लो
अपने बंद अधर अब खोलो!
चाहते हो -'मानव में एकता'
एक बार मुख से यह बोलो!!
अपने बंद अधर अब खोलो!!
अपने बंद अधर अब खोलो!!
जय हिंद जय भारत ....!!
ReplyDeleteबहुत सार्थक आव्हान ....... बदलाव की शुरुआत खुद से ही हो इससे अच्छा क्या हो सकता है..... आलेख की आखिरी पंक्तियों सब कह दिया है..... आभार
ReplyDelete"जब हम सुधरेंगे, तब जग सुधरेगा" आज इस वाक्य को हमें सार्थक करना होगा |
ReplyDeleteखूब लिखा है आपने! दिल को छू गया, हार्दिक शुभ कामनाएं .........
sarthak chintan...prerak lekh.
ReplyDeleteसहमत हूँ आपकी बात से । वैचारिक क्रान्ति की आवश्यकता है।
ReplyDeleteसही बात है. हम हमेश सोचते है क़ि दूसरे सुधर जाएँ.
ReplyDeleteसही बात ....शुभकामनायें !
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