गौरव शर्मा "भारतीय"
मैं कांग्रेस हूँ… कांग्रेस पार्टी, जिसे 72 प्रतिनिधियों ने 28 दिसंबर
1885 को मुंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में जन्म दिया था।
शुरूवाती दिनों में मेरा दृष्टिकोण एक कुलीन वर्गीय संस्था का था। अपने
जन्म के कुछ ही वर्षों बाद मैंने वर्ष 1907 में विभाजन की पीड़ा झेली और आज
तक झेल ही रही हूँ। कभी मुझे गरम दल और नरम दल के नाम से विभाजन की पीड़ा से
दो चार होना पड़ा तो कभी इंदिरा गाँधी के आत्मसम्मान की रक्षा के लिए मेरा
विभाजन किया गया। उन विभाजनों की पीड़ा को मैं आज भी महसूस करती हूँ पर आज
की स्थिति में हर रोज और हर क्षण जिस तरह मेरा विभाजन हो रहा है उसके सामने
वह पीड़ा कुछ नहीं है। लाल-बाल-पाल और गोखले-नौरोजी ने तो मेरा विभाजन
सिद्धांतों और आजादी की लड़ाई में जीत के उद्देश्य से किया था। लेकिन आज के
नेता मेरा विभाजन अपने सत्ता सुख के उद्देश्य के लिए कर रहे हैं, एक बार
नहीं बार-बार कर रहे हैं। अब मैं इतना टूट चुकी हूँ, इतनी बिखर चुकी हूँ कि
मुझे खुद का असली चेहरा भी याद नहीं रहा। मैंने आजादी की लड़ाई लड़ी,
महात्मा गांधी ने मुझे नेतृत्व दिया। नेहरु और पटेल ने मुझे जीवनभर मजबूती
दी। समय के साथ मुझे सुभाषचन्द्र बोस जैसा अध्यक्ष भी मिला जिसने पूरे देश
को एकता के सूत्र में पिरोकर जन-जन के मन में देशभक्ति के पौधे को सिंचित
किया पर आज न जाने कैसे-कैसे लोग मेरा नेतृत्व करने का दावा कर रहे हैं?
कोई त्याग की प्रतिमा कहलाने के लिए देश को एक निरीह, लाचार और बेबस इंसान
के हवाले कर मुझे कमजोर कर रहा है तो कोई बाहें चढ़ाकर मेरे नाम से देश की
मासूम जनता को धमकी दे रहा है। समझ नहीं आता है कि कौन नरम दल का है और कौन
गरम दल का ? नरमी और गरमी के इस नाटक को जब भी मैं समझने का प्रयास करती
हूँ, खुद ही उलझ कर रह जाती हूँ ! मैं मानती हूँ कि मेरे जन्म के समय एओ
ह्यूम एक ऐसी संस्था चाहते थे जो अंग्रेजी पढ़े-लिखे भारतीयों की हो। एक
ऐसी संस्था, जो ब्रिटिश सरकार की भक्त हो पर राष्ट्रवादी नेताओं के राजनीति
में प्रवेश के बाद मुझे राष्ट्रवादी संस्था होने का गौरव भी प्राप्त हुआ।
मैं पढ़े लिखे भारतीय अंग्रेजों की गिरफ्त से निकलकर मजदूर और किसानों तक
जा पहुंची। लोगों के दिलों में बसने लगी। देश की आजादी के लिए लोग मुझे आशा
भरी निगाहों से देखने लगे। मैंने आम जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने का
प्रयास भी किया पर आज लोग मुझे अविश्वास की नजर से देखने लगे हैं, मेरा
माखौल उड़ाते हैं। जो भारत मेरे रग-रग में बसता है उसे मुझसे मुक्त करना
चाहते हैं। शायद वे सही भी हों क्योंकि जिस तरह आज मेरे नाम का दुरूपयोग हो
रहा है इसके पहले कभी नहीं हुआ है। कभी नेहरु, पटेल, सुभाष और शास्त्री
कांग्रेसी कहलाया करते थे और मुझे उनपर गर्व हुआ करता था। जब लोग उन्हें
सम्मान देते थे तो मेरा सीना गर्व से चौड़ा हो जाता था पर आज कलमाड़ी, सुखराम
और न जाने कैसे-कैसे लोग खुद को कांग्रेसी बताकर कांग्रेस के सिद्धांतों
और रीति नीति के साथ बलात्कार कर रहे हैं। जिस देश में आजादी के पहले केवल
भारतीय बसा करते थे वहां हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, तमिल, तेलगु, कन्नड़
और न जाने कितने लोगों को बसा दिया। भारत को जाति, धर्म प्रांत और न जाने
किन-किन विभक्तियों में बाँट दिया। भाई को भाई से अलग करने और लड़ाने का हक
किसने दिया था इन मौकापरस्त नेताओं को ? जिस जनता ने इन नेताओं को चुनकर
भेजा इन्होंने उसे भी नहीं छोड़ा। जनता आज भी दो वक्त की रोटी के लिए तरस
रही है पर कुछ लोग 35 लाख का शौचालय बनाकर राष्ट्र की सेवा कर रहे हैं।
कॉमनवेल्थ गेम्स के नाम पर कॉमन मेन के वेल्थ से ही गेम कर गए। इन नेताओं
की कारस्तानी की वजह से कब तक मैं बदनामी का बोझ अपने सर पर लेकर फिरती
रहूँ ? और कब तक ऐसे नेता मेरे नाम को बदनाम करते रहेंगे ? आज मुझे महात्मा
गांधी की वह बात याद आती है, उन्होंने कहा था कि आजादी मिल गई है कांग्रेस
को अब समाप्त कर दो ! वाकई उस समय अगर मेरा विसर्जन हो गया होता तो आज
मुझे इतनी जिल्लत न सहनी पड़ती। अंत में मैं बस यही कहना चाहती हूँ कि असली
कांग्रेसियों को पहचानो, उन कांग्रेसियों को पहचानो जो आज भी मेरे
सिद्धांतों पर चल रहे हैं। केवल ऐसे लोगों को अपना समर्थन दो जो देश को आगे
बढाने में लगे हैं न कि देश का बंठाधार कर खुद का विकास कर रहे हैं।
वन्दे मातरम !
(प्रदेश व देश के विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित आलेख)
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