Monday, February 14, 2011

वेलेंटाइन डे और युवा ...

ससस्त आत्मीय जनों को आपके अपने गौरव शर्मा की ओर से सादर प्रणाम !!
{चित्र गूगल से साभार}
                    युवा किसी भी राष्ट्र की शक्ति होते हैं और विशेषकर भारत जैसे महान राष्ट्र की उर्जा तो युवाओं में ही निहित है अतः राष्ट्रीय परिदृश्य में युवाओं की भूमिका स्वतः सिद्ध है, पर जब वही युवा पाश्चात्य सभ्यता के अन्धानुकरण के फेर में देश की संस्कृति, सभ्यता और अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों से दूर होकर वेलेंटाइन डे, फ्रेंडशिप डे जैसे और भी न जाने ऐसे कितने बेतुके तथाकथित दिवस को बड़े उत्साह के साथ मनाते नजर आते हैं और उन्ही युवाओं को जब राष्ट्रीय महत्त्व के दिन भी याद नहीं रहते तो मन में यह सवाल अवश्य आता है कि आखिर हमारे युवा कहाँ जा रहे हैं ? और कहाँ जा रहा है हमारा देश ? कैसे हम इन पथभ्रष्ट युवाओं को अपनी शक्ति अपनी ,उर्जा का श्रोत मान सकते हैं और कैसे  इनके बल पर देश के विकास का स्वप्न देख सकते हैं ? निश्चित रूप से हम सभी को इस विषय में गंभीरता से विचार करना होगा अन्यथा स्थिति अकल्पनीय होगी |
{चित्र गूगल से साभार}
                   हम अगर अपने इतिहास में जाएँ तो इस बात का कहीं कोई प्रमाण नहीं मिलता की श्री कृष्ण ने सुदामा जी को "हैप्पी फ्रेंडशिप डे" कहा हो या राधा जी को "हैप्पी वेलेंटाइन डे" कहा हो पर आज संसार में श्री कृष्ण और सुदामा जी की दोस्ती और राधाकृष्ण का प्रेम आदर्श माना जाता है |  कहने का तात्पर्य यह है की प्रेमाभिव्यक्ति अथवा भावाभिव्यक्ति हेतु किसी नियत तिथि या दिवस की आवश्यकता नहीं होती, आवश्यकता होती है तो केवल रिश्तों में मिठास की और ह्रदय में अपनापन की, आत्मीयता की जिसे अभिव्यक्त करने के लिए हम किसी तिथि  के मोहताज नहीं | कहना आवश्यक है विदेशों में रिश्तों में अपनापन और आत्मीयता गौण है पर फिर भी उनके लिए इसे प्रदर्शित करना आवश्यक होता है | वे आज एक व्यक्ति के साथ अगर वेलेंटाइन डे मना रहे हैं तो आवश्यक नहीं की आगामी डे भी इसी व्यक्ति के साथ मना सकेंगे और हमारे देश में रिश्ते जन्म जन्मान्तर तक निभाए जाते हैं क्योंकी हमारे रिश्ते खोखले नहीं हैं, उनमे संवेदनशीलता है, विश्वास है, अपनापन है, आत्मीयता है | विदेशों में मदर्स डे, फादर्स डे का भी प्रचलन है क्योंकी वहां संयुक्त परिवार की प्रथा नहीं एकल परिवार की प्रथा प्रचलित है एक निश्चित समय के उपरांत माँ बाप अपने बेटों से और बेटे अपने माँ बाप से अलग जीवन व्यतीत करते हैं अतः वे एक दिन अपने माता पिता के प्रति प्रेम अथवा सम्मान की भावना को प्रदर्शित करते हैं जबकि हमारे देश में श्रवण कुमार और श्री राम जी जैसे पुत्र होते हैं जिन्हें अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करने की कतई आवश्कता नहीं होती |
                    वर्तमान समय की आवश्कता है की हम पाश्चात्य संकृति के अन्धानुकरण को त्यागकर अपने संस्कार, अपनी संस्कृति को आत्मसात करें तथा अपने भारत को पतन की ओर अग्रसर होने से रोकें यही हमारा कर्त्तव्य है | मै स्वयं युवा हूँ और मेरा उद्देश्य युवा वर्ग को कटघरे में खड़ा करना नहीं वरन उन्हें गलत राश्तों पर जाने से रोकना है उन्हें देश के विकास की मुख्यधारा से जोड़कर राष्ट्रहित में समुचित योगदान देने हेतु प्रेरित करना है |
                                                            जय हिंद जय भारत

8 comments:

  1. सब मार्केटिंग का फ़ंडा है।
    अलाना-फ़लाना जितने भी डे आते हैं,
    सबके पीछे बाजारवाद है।
    लोगों की जेब से अधिक से अधिक धन निकालने के लिए।

    अच्छी पोस्ट
    आभार

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  2. मदनोत्सव के देश में प्रेम का यह रूप अजीब भी लगता है और अफसोसजनक भी...... सार्थक विचार साझा किये आपने.....

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  3. शर्मा जी!


    न सभ्यता, न संस्कृत॥
    केवल अन्धानुकरण, विकृति।
    प्रायोजक बना बाज़ारवाद
    इस आँधी में सब बर्बाद।

    बेचारे सन्त वेलेण्टाइन के नाम को भी मिट्टी में मिला रहे हैं ये तथाकथित ‘आधुनिकता’ के पक्षधर-पालक-पोषक, मानवता-संस्कृति-मूल्यों-आस्थाओं एवं विश्वासों के शोषक।

    मनाते हैं तो मनाने दीजिये, इन्हें वेलेण्टाइन और जितने डे होते हैं, सबके चोंचले...................खुद-ब-खुद ये शान्त हो जायेंगे...............जब ज़ेब में पैंसे नहीं बचेंगे............वेलेण्टाइन भी साथ छोड़ देगी.............तब देखियेगा कि इनका क्या हश्र होता है। हर विकृति का अन्त होता ही है। प्रेम एकभावना है..............वेलेण्टाइन मनाने वालों ने उसे एक परिधि में, एक सीमा में बाँध दिया है.........................यह तो सर्वविदित है कि जिसकी सीमा है उसका अन्त होगा ही।


    आपने सही बात कही है...................वर्तमान समय की वस्तुतः यही आवश्यकता है। हम सृजन करें ............न कि अनुकरण....क्योंकि अनुकरण नाटक होता है।

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  4. साधु साधु... गौरव जी,
    सार्थक चिन्तन,
    परिपक्व दृष्टि,
    विचारणीय लेख..
    शुभकामनाएं....

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  5. अति सुन्दर, वर्तमान समय की आवश्कता है की हम पाश्चात्य संकृति के अन्धानुकरण को त्यागकर अपने संस्कार, अपनी संस्कृति को आत्मसात करें लेकिन साथ ही साथ ये भी जरूरी है की जो अच्छी बातें हैं उन्हें अपनाएँ तथा अपने भारत को पतन की ओर अग्रसर होने से रोकें हमारे देश में जो धार्मिक पाखण्ड तथा अंधविश्वास फैला है कृपया ये भी दूर करने की प्रयत्न करें.यही हमारा कर्त्तव्य है

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  6. प्रिय बंधुवर गौरव शर्मा "भारतीय" जी
    सस्नेहाभिवादन !

    वेलेंटाइन डे और युवा … आलेख के माध्यम से आपने अच्छा संदेश दिया है । सच है - प्रेमाभिव्यक्ति अथवा भावाभिव्यक्ति हेतु किसी नियत तिथि या दिवस की आवश्यकता नहीं होती, आवश्यकता होती है तो केवल रिश्तों में मिठास की और ह्रदय में अपनापन की, आत्मीयता की !

    ममता त्रिपाठी जी , मदन शर्मा जी , ललित शर्मा जी के विचारों से भी सहमति है ।

    … लेकिन , मंगलकामनाओं का अवसर भी खोना उचित नहीं …
    नेट की समस्या के कारण
    दो दिन विलंब से ही …
    प्रणय दिवस की मंगलकामनाएं ! :)
    स्वीकार करें …
    ♥ प्रेम बिना निस्सार है यह सारा संसार !
    बसंत ॠतु की भी हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

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  7. sarthak chintan ..
    sarthak lekhan ...kalam yahin sarthak hoti hai .
    bahut-bahut aabhar.

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